प्रवीण पाण्डेय जी की पिछली पोष्ट रघुवीर जी की कथा को पढ़ा तब
से जेहन में मेरे कालेज के सहपाठी व घनिष्ठ मित्र केपी बाबू का व्यक्तित्व बरबस
घुमड़ रहा है। वैसे तो केपी बाबू का नाम अति सुंदर,गंभीर व वृहत् है किंतु कालेज के दिनों से
ही उन्हें हम केपी, केपीभाई या केपीबाबू ही बुलाते रहे
हैं।प्राय: हमारे दोस्तों के बीच उपयोग होने वाले उपनाम या लघुनाम इतने प्रसिद्ध व
स्वाभाविक हो जाते हैं, कि असली
नाम विस्मृत ही हो जाता है,और यह व्यक्तित्व का ऐसा स्थाई अंग बन जाता है कि अकस्मात किसी ने यदि पूरे नाम से संबोधित किया
तो बड़ा अटपटा व अजनबी सा प्रतीत होता है।
तो जैसा मैं कहना चाह रहा था कि हमारे केपी बाबू का
व्यक्तित्व प्रवीणजी के लेख के पात्र रघुवीर जी की छायामूर्ति है। रघुवीर जी के
व्यक्तित्व के तीनों विश्व-आयाम केपी बाबू के व्यावहारिक जीवन में अति स्पष्ट व
जीवंत दिखते है।
लगभग बाईस वर्षों से सफल आईटी इंजिनियर व विभिन्न महत्वपूर्ण
बहुराष्ट्रीय संस्थानों में उत्कृष्ट कैरियर,सुंदर सुरुचिपूर्ण घर और गृहस्थी,अपने अति आधुनिक व
आदर्श रेजिडेंसिल सोसाइटी के सचिव व सोसाइटी के आवासों व परिसर में विभिन्न
सार्वजनिक सुविधाओं हेतु आधुनिक आईटी टेक्नालाजी व ग्रीनऊर्जा के सही अर्थों में सदुपयोग
में अद्भुत योगदान व सतत प्रयाशरत, आर्ट ऑफ
लिविंग के हर रचनात्मक कार्यक्रमों में नियमित व सतत सक्रिय, उत्तर
प्रदेश के धुर ग्रामीण क्षेत्र में अपने मूलनिवास व सगेसंबंधियों से बराबर का सानिध्य,उनके
दुख-सुख ,उत्सव-समाराहों में पूर्ण तत्परता व सहयोगपूर्ण व सहर्ष
भागीदारी, इस तरह प्रवीण जी की चर्चा के अनुसार हमारे अंदर स्थापित
तीनों विश्व को बड़े ही सुंदर व संतुलित रूप में हमारे केपी बाबू सहजता व स्वाभाविक
प्रसन्नता के साथ सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।
वे स्वयं ही नहीं, अपितु उनका पूर्ण
परिवार,उनकी सुंदर पत्नी,उनकी अति सौम्य व प्यारी बिटिया व उनका नटखट
प्यारा बेटा सभी उनके व्यक्तित्व के अद्भुत रूप व उनके इस त्रिविश्व के अभिन्न अंग
व पूरक शक्ति के रूप में सतत सहयोगी व सक्रिय हैं।
ऐसा नहीं है कि उनका व्यक्तिगत जीवन किसी संघर्ष व कठिनाई से
रहित रहा व उनके लिये सब कुछ सुगमता से संभव हो गया। पत्नी का युवावस्था में
गम्भीर डायविटीज से ग्रस्त होना,परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन के शुरू के ही
वर्षों में क्रमश: दो गर्भपात का आघात इनके शारीरिक व मानसिक दोनों स्तर पर अति
वेदना व सदमापूर्ण रहे।
किंतु पति पत्नी दोनों का पारस्परिक अद्भुत सहयोग,प्रेम,आत्मबल व धीरज इन
कठिन परिस्थितियों को स्वीकार व सामना करने में सहयोगी रहा।उसी के परिमाणस्वरूप व
आधार पर आज उनका संतुलित व सर्वरूपेण समृद्ध त्रिविश्व स्थापित व उन्नत है।
एक दिन गृहस्थजीवन व इसके सुखदुख के विभिन्न आयामों पर हमदोनों की आपसी चर्चा में मैंने उनके सुखी गृहस्थ जीवन की
व्खाख्या,चाणक्य के
निम्नलिखित नीति-श्लोक के आधार पर करने व
समझने का प्रयाश किया-
अर्थागमो नित्य अरोगिता च
प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च ।
वशस्य पुत्रोर्थकरीच विद्या,
षड्जीवलोकस्य सुखानि राजन्।।
अर्थात् धन का नियमित आगम हो,
शरीर
स्वस्थ व रुग्णरहित हो,पत्नी
प्रिय(सुंदर) व प्रियबोलने वाली हो,पुत्र आज्ञाकारी हों और अर्जित विद्या व ज्ञान सार्थक व
जीवनउन्नति में सहयोगी हो,
मनुष्य
के यहीं छ: लौकिक जीवन सुख हैं।
केपीबाबू इन छ: लौकिक सुखों से परिपूर्ण सुंदर व सुखद
गृहस्थजीवन अपने स्वाभाविक मुखस्मित के साथ निभा रहे हैं। कामना है उनका सुंदर
संतुलित त्रिविश्व इसी तरह सदैव समृद्ध रहे व इसमें निरंतर उन्नति होती रहे।
वाह, केपीबाबू जी को मेरा प्रणाम, वे औरों के भी प्रेरणास्रोत बनें..
ReplyDeleteघन्यवाद। आपकी शुभकामना मैं केपी बाबू तक अवश्य पहुँचा दूँगा।
Deleteइन छहों सुखों का वास जन जन के जीवन में हो, यही प्रभु से प्रार्थना है...
ReplyDeleteजी रंजना जी, अति शुभ विचार हैं। टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteअपने आसपास देखेंगे तो ऐसे बहुत से लोग दिखायी देंगे।
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