Friday, March 30, 2012

तेरी अलबम से चुरायी तस्वीर को सजाया है दिलखाने में....


मंजिले कितनी मिलीं, सफर साथ रहा घुप अँधेरे में,
मुझसे रुखसत भी हुये तुम तो  दिन उजाले में ।1।

एक ही साहिल में हमने तय किये दरिया के सफर,
डूबकर मरना भी था तो एक टूटते पैमाने में ?2।

मेरे जख्म बड़े गहरे है, इन्हे कुरेदते क्यूँ हो?
आँख जो नम हुईं तो मुश्किल इन्हे सुखाने में ।3।

बात जो तेरे मेरे दरमियान थी तो भला क्या मस़ला,
अब तो चर्चा हुई है रोज हमारी इस आमखाने में ।4।

हमने इन हाथों से ही कितने गैरों के दरीचे सींचे,
मगर मोहताज-ए-रंग रहे अपने ही गुलखाने में ।5।

चलो माना कि है गुरेज़ तुम्हे मेरे पहलू में रहनुमाइस़ से,
तेरी अलबम से चुरायी तस्वीर को सजाया है दिलखाने में ।6।

1 comment:

  1. वाह, ऐसी तस्वीरों में जीवन निकल जाता है।

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