Thursday, September 29, 2011

कब के बिछड़े हुए हम आज कहाँ आ के मिले


सहपाठी का सम्बन्ध भी अनूठा होता है,उनकी यादें अमिट और गहरी होती हैं,कितने भी साल क्यों न बीत गये हों जब साथ पढ़े थे और फिर समय के साथ बिछड़ गये किंतु मन में सहपाठी की स्मृति सदैव बनी होती है,समय के साथ यादों में थोड़ा धुँधलापन तो आ जाता है,नाम और चेहरे का तालमेल बैठाने में मस्तिष्क को थोड़ा श्रम तो करना पड़ता है, किंतु जैसे ही छोटी छोटी बातों की चर्चा शुरू होती हैं, कक्षा के अंदर या बाहर की खास शरारतें या छोटी बड़ी घटनायें,अध्यापकों से सम्बंधित खास बातें व उनके पढ़ाने के खास अंदाज, कक्षा के कुछ विशेष लोग और उनसे जुड़ी विशेष बातें और इवेंट्स,साथ बिताये और सेलिब्रेट किये सभी ग्रुप इवेंट्स और मौजमस्ती ,  इन सारी साझा बातों और घटनाओं की जैसे ही चर्चा शुरू होती है, तो समय के साथ यादों के दर्पण पर आया धुँधलापन समाप्त हो जाता है,और बातों ही बातों में वे साथ बिताये दिन और क्षण स्पष्ट व  साक्षात सामने आ जाते हैं, और कुछ समय के लिये तो हम बात करते करते उन्हीं दिनों में खो ही जाते हैं।

अपने प्राथमिक स्कूल से शुरू करके , मेरी शिक्षा के पिछले पड़ाव, IIMB में PG Managemnt की पढ़ाई, के बीच की शिक्षा यात्रा में कई स्कूल,कालेज,युनिवर्सीटी ,प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ने का सौभाग्य ईश्वर ने दिया- मिडिल स्कूल केकराही,हाईस्कूल और इंटरमीडिएट ओबरा इंटर कालेज,बी एस सी इलाहाबाद युनिवरसीटी,बी टेक मदन मोहन मालवीय इंजिनियरिंग कालेज गोरखपुर, एम टेक आई टी बी एच यू,, IRSEE प्रोबेसनरी ट्रेनिंग भारतीय रेल विद्युत इं संस्थान नासिक और रेलवे स्टाफ कॉलेज बड़ोदरा, PG management Public Policy , मैक्सवेल स्कूल, सिराक्यूज युनिवर्सीटी, यू एस ए ।

मेरे जीवन की इस शिक्षा यात्रा में जो भी जानने सीखने को मिला, उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण रहा है लगभग हजारों की संख्या में महानुभावों के साथ नजदीकी परिचय,आत्मिक व मानसिक अंतरंगता व साहचर्य का मिला शुभ अवसर- जिनमें सहपाठियों के साथ ही शामिल हैं- गुरुजन, वरिष्ठ व कनिष्ठ सहपाठी गण, शिक्षणेतर कर्मचारीगण, जिनका भी हमारे  विद्यार्थी जीवन के सफल निर्वाह में कम योगदान नहीं रहा।

ये सभी महानुभाव हमारे जीवन में उतने ही महत्व रखते हैं जितने हमारे अपने परिवार के सदस्यगण।हमारा जीवन व इसका अस्तित्व इन विशेष महानुभावों के निरंतर अहसास व अनुभूति करते रहने के बिना अधूरा लगता है।

कितने ही साल क्यों न बीत गये हों,  जब हम कुछ समय साथ रहे और फिर एक नयी शिक्षा- यात्रा को लिये बिछड़ गये, पर जब भी अपने पुराने स्कूल या कॉलेज का कोई संदर्भ या प्रकरण आता है, मन अनायाश ही अपने सहपाठियों, व गुरुजनों के स्मरण व यादों में व्यस्त हो जाता है,अनेक उत्सुकताओं व प्रश्नों की शीतल बौछारें मन में सकृय हो जाती है- फलाँ अब कहाँ होगा,कैसा होगा,क्या कर रहा होगा,कैसा दिखता होगा जैसे अनेकों विचार मन में एकसाथ घुमड़ आते है, उनका खयाल आते ही मन को तो पंख ही लग जाते हैं।

कभी-कभी मन में कसक भी उठती कि फिर कभी उससे मुलाकात या बात होगी भी या नहीं, हाँ कितने ही अपनें पुराने यार जिनकी यादें अक्सर मन में तैरती रहतीं ,इस दुनिया की भीड़ में पता नहीं कहाँ गुम हो गया , कई सालों से उनकी कोई खोज-खबर नहीं मिली, और इसलिये उनके लिये जब-तब मन उदास और भारी हो जाता ।

किंतु पिछले कुछ वर्षों से इंटरनेट- सोसल नेटवर्क, विशेषकर फेसबुक, ने हमें अपने पुराने दोस्तों से कई वर्षों के बाद वापस जोड़ने,उनसे सम्पर्क में बने रहने में चमत्कारिक योगदान किया है, कहें तो कई वर्षों से बिछड़े पुराने दोस्तों से फिर से वापस मिलाने के लिये यह सोसल नेटवर्क हमारे लिये एक देवदूत बनकर आया।

हमारे कॉलेज के ज्यादातर सहपाठी तो विगत कुछ वर्षों से ई-मेल के माध्यम से वापस जुड़ गये थे,किंतु स्कूल के पुराने दोस्तों से कोई कनेक्सन नहीं बन पाया था-अब तो यह भी नहीं पता था कि अब कौन है भी कहाँ । फिर अचानक , कह सकते हैं पिछले दो-तीन साल से ही, इस सोसल नेटवर्क ने एक प्लेटफॉर्म दिया है, एक-एक कर पुराने बिछड़े स्कूल दोस्त आपस में जुड़ते जा रहे हैं,  अब एक सुखद अनुभूति होती है कि आज अपने ढेरों पुराने स्कूली दोस्त इस नेटवर्क प्लेटफॉर्म  में उपलब्ध हैं, हम सब अपने जीवन की इस अधेड़ अवस्था में भी,  बचपन के ही  उत्साह और उमंग के साथ एक दूसरे को आपस में जोड़ने मे निरंतर लगे हैं।

हर नये दिन जब कोई पुराना दोस्त,जिसकी पिछले कई सालों से कोई खोज-खबर नहीं थी,आज जब वह अचानक अपने फ्रेडलिस्ट में जुड़ा मिलता है तो मन की उमंग का कहना ही क्या!

जब अपने पुराने स्कूली दोस्त कई वर्षों के अंतराल के बाद वापस जिंदगी से जुड़ गये हैं, तो मेरा मन फिल्म लावारिस का अपना पसंदीदा गीत गुनगुना रहा है-

कब के बिछड़े हुये हम आज कहाँ आ के मिले।
जैसे शम्मा से कहीं लौ ये झिलमिला के मिले।।

फिर भी सच पूछिये तो अब भी मन थोड़ा सा उदास है- फ्रेंड लिस्ट में निरंतर पुराने दोस्तों के नाम बढ़ तो रहे हैं, पर अभी भी कुछ खास नाम हैं जिनको मन अब भी बेसब्री से तलाशता है। जब भी फेसबुक पर अगली बार लागिन होता हूँ, तो मन के कोने में एक उम्मीद और जिज्ञासा सी बनी रहती है कि उस खास नाम में से कोई एक भी फ्रेंडलिस्ट में आ जुड़ा हो या उसका कोई संदेश आया हो?

मन तो इंतजार में है,  कि उन खास दोस्तों से फिर से मुलाकात हो जाय। काश मेरे उन पुराने बिछड़े दोस्तों के मन में भी कोई यह दस्तक दे दे ,हमारी याद उन्हे भी आ जाय और मुझे  उनका संदेश मिले और हम फिर से जुड़ जायें।मैं अपने उन खास दोस्तों का नाम तो यहाँ नहीं लिख रहा हूँ , पर मन में एक उम्मीद और विश्वास अवश्य रखा हूँ कि इक दिन उनके मन में मेरी यादों की दस्तक अवश्य  होगी और हम आपस में फिर से जुड़ेंगे और हमारे पुरानी दोस्ती की यादें  फिर से तरोताजा होंगी।

1 comment:

  1. आपके लिए दुआ है कि सभी छूटे मित्रों से यथाशीघ्र संपर्क हो...

    हाँ,उनसे संपर्क शायद संभव नहीं जिहोने गाँव के पाठशाला से आपकी तरह इस ऊंचाई तक का शिक्षा सफ़र न तय किया होगा, जो अंतरजाल से आज भी बहुत दूर हैं...

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