Thursday, January 12, 2012

देश का भविष्य और स्वप्नद्रष्टाओं व कर्मवीरों की प्रमुख भूमिका......


विकासोन्मुख भारत ( चित्र- गूगल के सौजन्य से)


कुछ दिनों पूर्व एक समाचार पत्र में The Country needs dreamers and doers शीर्षक से एक लेख पढ़ा । इस लेख को लिखा है श्री विजय गोविंदराजन ने जो एक मुख्य अमरीकी बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर व जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी के मुख्य नवाचार(Innovation) सलाहकार हैं।

इस लेख का केंद्रविंदु यह है कि भारत को सन् 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त हो गयी, किंतु सन् 2047 , इसके शतकीय वर्षगाँठ वर्ष, तक यह एक उन्नत, समृद्ध देश हो व विश्व का सही अर्थों में नेतृत्व करने में समर्थ हो, इसके लिये आवश्यक है कि हम इस स्वप्न को साकार करने के अनुरूप संकल्पशक्ति प्रदर्शित करें व यथास्थिति से हटकर एक नवाचारपूर्ण कर्मवीरता व उद्यमशीलता का अनुपालन करें ।

लेखक का मत है कि महान लक्ष्यों की प्राप्ति भूतकाल की उपलब्धियों का मात्र यशोगान करने से नहीं होती,बल्कि यह भविष्य के प्रति सही मार्गदर्शन व नेतृत्व से सम्भव होती है।उनका कहना है कि जो कल महान व महत्वपूर्ण था,वह कल भी महान व महत्वपूर्ण बना ही रहे ,यह जरूरी नहीं है।बल्कि समय के साथ अपनी महानता व महत्व को कायम रखने लिये स्वयं को समय के अनुकूल निरंतर पुनरन्वेषित करते रहने व नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता होती है।

उदाहरण स्वरूप 100 वर्ष पूर्व यदि शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों की सूची बनायें तो उनमें अमरीका का एक भी विश्वविद्यालय नहीं था,उस सूची में अधिकांश स्थान जर्मनी का था। जबकि आज की स्थिति में उसके उलट,इस सूची के ज्यादातर स्थान अमरीकी विश्वविद्यालयों के हैं।आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि अगले बीस वर्षों में स्थिति और बदले और ये सारे शीर्ष स्थान चीन द्वारा अधिग्रहित हो जायें।तो कुशल रणनीति का सार है भविष्य को सुरक्षित रखना व इसे सुनिश्चित करना।

स्वतंत्रोत्तर भारत के आर्थिक इतिहास को तीन कालों में विभाजित कर सकते हैं-प्रथम काल 1990 पूर्व- लाइसेंस राज ,द्वितीय काल-पिछले दो दशक जिसमें वैश्वीकरण के परिपेक्ष्य में भारत द्वारा धनी व सभ्रांत देशों हेतु सेवाप्रदायगी, विशेषकर आई.टी सेवा क्षेत्र, की उत्कृष्ट परिचालन क्षमता व किफायती लागत खर्च के व्यावसायिक कारण व कारकों से देश की तेजगति से आर्थिक उन्नति  , और तीसरा काल है वर्तमान व अगले तीन दशक जोकि नवाचार(Innovation) -युग होगा।

लेखक ने भारत को मुख्यत: तीन क्षेत्रों - स्वास्थ्य,शिक्षा व उर्जा क्षेत्र में नवाचार-मूलक बनने व स्वयं को पुनरन्वेषित करते रहने की सलाह दी है।

वर्तमान में हमारे देश में आर्थिक पिरामिड के मात्र उच्च 10 प्रतिशत अंश को ही गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्यसेवायें उपलब्ध हैं।भारत की अधिकांश आबादी,जो ग्रामीण इलाके में रहती है, आज भी मूलभूत स्वास्थ्य-सेवाओं से वंचित हैं।देश में अरविंद आई व नारायण हृदयालय जैसे कुछ स्वास्थ्यसेवा संस्थान विकसित हुये हैं, जो काफी किफायती दर पर विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करने में सक्षम हैं, किंतु पूरे देश की आवश्यकता को देखते हुये इनके समान और हजारों स्वास्थ्यसेवा संस्थानों को शीघ्रातिशीघ्र विकसित करने की आवश्यकता है।आईटी के विस्तृत उपयोग व टेलीमेडिसीन सेवा के सदुपयोग से हम करोड़ों लोगों तक आवश्यक व आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुगमता से उपलब्ध करा सकते हैं।

भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व उसके लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।उच्चशिक्षा की स्थिति तो और चिंताजनक है।भारत में वर्तमान में मात्र 300 विश्वविद्यालय हैं, यदि इसे अमरीका के स्तर की उच्चशिक्षा सुविधा उपलब्ध करनी है तो कम से कम 2000 अतिरिक्त विश्वविद्यालयों / उच्चशिक्षण संस्थानों की तुरंत आवश्यकता है।

इस बड़े स्तर पर बुनियादी सुविधाओं का निर्माण,आवश्यक प्रशिक्षित मानवसंसाधन व आघुनिक तकनीकी सुविधाओं को पारंपरिक तरीके से , अथवा अमरीका या किसी अन्य विकसित देश की नकल मात्र द्वारा ,जुटाना कतई संभव नहीं ।आवश्यकता है नवाचारपूर्ण तौर-तरीकों व कुशल रणनीति व कार्ययोजना व उनके सफल क्रियान्वयन की। डिजिटल तकनीकी व आधुनिक सूचना प्रणाली के समुचित व कुशल उपयोग से हमें यह संभव करना होगा कि आईआईटी के स्तर की गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा हमारे सभी आकांक्षी व भावी अभियांत्रिकी छात्रों को उपलब्ध हो।आवश्यकता है कि देश द्वारा शिक्षा के विकास में अभूतपूर्व व असाधारण रूप से संसाधनों का निवेश ।

एक महान देश होने हेतु परम आवश्यक है उर्जा-सुरक्षा।भारत में आज भी बिजली को एक विलासितापूर्ण आवश्यकता माना जाता हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण व लाचार मानसिकता का प्रतीक है।जहाँ एक ओर बिजली की आवश्यकता व उत्पादन-क्षमता के बीच काफी फासला है, वहीं हमारी विद्युत पारेषण व वितरण की दक्षता व क्षमता भी दोयम दर्जे की है।

इसमें भी हमें नवाचारपूर्ण व नवतकनीकी विधियों व कौशल को शीघ्र अपनाना होगा।आने वाले दो-तीन दशकों में हमें इस दिशा में गहरी छलांग लगानी होगी व अक्षय उर्जा श्रोतों, जैसे सौर,पवन,बायोमास व बायोगैस के उपयोग के विकास व स्थापना में विश्व-अगुआ बनना होगा।माइक्रोग्रिड व आधुनिक पावर इलेक्ट्रॉनिकी की सहायता से यह सुनिश्चित करना होगा कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुगमता से बिजली उपलब्ध हो।

लेखक का मानना है कि स्वास्थ्य,शिक्षा व उर्जा मूलभूत मानव अधिकार हैं, और इन्हे सर्वजनसुलभ कराये बिना विकाश की बातें करना बेमानी है।भारत इन तीनों क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन का वैश्विक नेतृत्व करने में सक्षम व योग्य है।कहते हैं- उन्नीसवी शताब्दी यूरोप की थी,बीसवीं शताब्दी अमरीका की ।निश्चय ही इक्कीसवी शताब्दी भारत व भारतवंशियों की है।किंतु इसके लिये अतिआवश्यक व चुनौतीपूर्ण कार्य है जनोन्मुख व जनसाधारण की क्षमता व उपलब्धि सीमांतर्गत उचित व सुगम और किफायती व भागीदारीपूर्ण तरीकों व सुविधाओं का ईजाद व उनका सहज क्रियान्यवयन । इससे ही वर्तमान जटिल आर्थिक,सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का उन्मूलन संभव हो सकता है और देश की अभूतपूर्व उन्नति व विकाश का मार्ग प्रशस्त होगा।

लेखक के अनुसार महात्मागाँधी की सोच व कार्यशैली अति जनोन्मुखी,मितव्ययितापूर्ण व समतामूलक थी,जिससे ही भारत जैसे देश की वर्तमान जटिल समस्याओं के निराकरण व इसके अपने तरीके व आत्मशक्ति से विकास होने की क्षमता व संभावना है।तो इसी मार्गदर्शन को अपनाते हुये,आवश्यकता है मितव्वयितापूर्ण नवाचारों व नवकुशल तकनीकी तौरतरीकों की जिनसे हम अपनी समस्याओं का अपने तरीके से समाधान कर सकें व हम अपना विकास अपने तरीके से कर सकें।

किंतु इसके लिये आवश्यक व सबसे बड़ी चुनौती है हमारे देश में स्वप्नद्रष्टाओं व कर्मवीरों की।लेखक इस हेतु भारत के हर जन की भागीदारी का आह्वान करता है।

1 comment:

  1. आपकी पुकार को स्वर हम भी देते हैं, सपना देखने वालों को आँखों पर बिठाये यह देश।

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