Wednesday, January 18, 2012

रावन रथी बिरथ रघुबीरा........


मेरा आवास मेरे कार्यस्थल से दूर होने व बंगलौर में ट्रैफिक की भारी समस्या के कारण मुझे सुबह घर से कार्यालय आने व शाम को कार्यालय से घर वापस जाने में प्राय: घंटे सवा घंटे लग जाते हैं।वैसे तो प्रतिदिन का सुबह-शाम इतना लम्बा सफर किसी 'suffer' से कम नहीं किंतु इसका सकारात्मक पक्ष यह होता है कि यह समय मेरा अपना होता है,जिसमें मैं अपने मनपसंद गाने सुनता हूँ या अपने ब्लाग पर लिखता हूँ।

जब आप अपने मनपसंद तरीके से समय बिता रहे हों तो पता ही नहीं चलता कि वक्त कब और कैसे बीत गया।वैसे तो यफएम रेडियो पर भी अच्छे व नये गाने आते हैं और उन्हे सुनना अच्छा व मन को तनावरहित करता है, किंतु प्राय: मैं अपने मोबाइल फोन पर ही अपने पसंदीदा स्टोर गाने सुनता हूँ। मुझे संस्कृत के गीत विशेष रूप से विष्णु सहस्रनाम,भजगोविंदम,मधुराष्टकम्, रुद्राष्टकम्, जयगोविंद कृत अष्टपदी,सौन्दर्यलहरी इत्यादि पसंद हैं।प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों जैसे एम यस सुब्बुलक्ष्मी, बालामुरलीकृष्णा,घंटशाल,बॉम्बे सिस्टर्स,पंडित भीमसेन जोशी,पंडित जसराज के अद्भुत दिव्य स्वरों में गाये ये संस्कृत गीत मन व हृदय को अलौकिक शांति व सुख देते हैं।

इनके अतिरिक्त हिंदी के भजन विशेष रूप से संत कबीर के पद ,रामचरित मानस और मीरा के भजन सुनना  मुझे अति प्रिय है। मेरे मोबाइल फोन में राजनसाजन मिश्र द्वारा गाये इन भजनों के अच्छे संग्रह हैं जो मैं प्राय: सुनता हूँ। अभी हाल ही में छन्नू लाल मिश्र जी के गाये रामचरित मानस के कुछ प्रकरण जैसे केवट-संवाद, विभीषण गीता,उत्तर कांड में गरुड़-कागभुसुंडी संवाद मैंने अपने मोबाइल फोन में संकलित किया।

पद्मभूषण श्री छन्नूलाल मिश्रा जी प्रसिद्ध तबलावादक पद्मविभूषण स्वर्गीय श्री गुदई महाराज जी के     पौत्र  ( Grandson) व बनारस घराने के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय खयाल गायक है।उनकी आवाज में दैवीय शांति व आकर्षण है।उनका गाया विभीषण गीता,जो रामचरित मानस के लंकाकांड में राम विभीषण संवाद पर आधारित है, अद्भुत भाव व प्रेरणाप्रद है। विभीषण गीता की पंक्तियाँ व भावार्थ इस प्रकार हैं।

दुहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरी जानि।
भिरे बीर इत रामहि उत रावनहि बखानि।1।
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।बंदि चरन कह सहित सनेहा।2।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।जेहि जय होइ सो स्यंदन आना।3।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका।सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे।छमा कृपा समता रजु जोरे।4।
ईस भजनु सारथी सुजाना।बिरति चर्म संतोष कृपाना।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।बर बिग्यान कठिन कोदंडा।5।
अमल अचल मन त्रोन समाना।सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद विप्र गुरु पूजा।एहि सम विजय उपाय न दूजा।6।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें।जीत न कहँ न कतहुँ रिपु ताके।7।
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।8।

इसका भावार्थ है-

दोनों दिशाओं में अपनी अपनी सेना की जयजयकार हो रही है।एक तरफ राम का नाम लेकर तो दूसरी ओर रावण की दुहाई देते दोनों सेना के वीर योद्धा परस्पर भिड़ रहे हैं।रावण रथ पर सवार है जबकि राम रथविहीन पैदल हैं, यह देख विभीषण अधीर हो उठता है।राम के प्रति अपने अति प्रेम व चिंता वश मन में उनके सुरक्षा के प्रति उपजी आशंका के कारण वह राम को प्रणाम करते हुये निवेदन  किया कि महाराज न आपके पास रथ है,न आपके पैरों मे सुरक्षा हेतु जूते हैं,किस तरह इतने बलशाली योद्धा से विजय प्राप्त करेंगे?यह सुनकर राम बोले कि मित्र जिस रथ से विजयश्री मिलती है वह एक सामान्य रथ जिसपर रावण आरूढ़ है नहीं होता, बल्कि वह कोई और रथ होता है। उस विजयश्री प्रदान करने वाले रथ के पहिये शौर्य व धैर्य होते हैं,उसकी पताका सत्य व मर्यादा होते हैं,बल बुद्धि व अनुशासन उसके घोड़े होते हैं जो क्षमता,कृपा व समता की रस्सी से आपस में जुड़े होते हैं,ईश्वर की आराधना ही उसका सारथी है, विरक्ति उसकी ढाल है और संतोष ही उसका कृपाण होता है,दान ही उसका फरसा,बुद्धि उसकी प्रचंड शक्ति है,विज्ञान कौशल ही उसका मजबूत धनुष है,निर्मल मन ही वह तरकस है जिसमें समता,यम व नियम के अनगिनत बाण संग्रह होते हैं।ब्राह्मण व गुरु की वंदना ही अभेद कवच है,और इससे योग्य विजय हेतु कोई साधन नहीं।राम ने कहा कि हे मित्र जिसके पास यह धर्ममयी रथ है,उसे इस संसार में कहीं भी व कोई भी शत्रु पराजित नहीं कर सकता।

आपकी सुविधा के लिये मैंने यहाँ पर श्री छन्नूलाल मिश्रा जी के गाये इस गीत की MP3 फाइल  का लिंक संलग्न किया है। यदि समय अनुमति दे तो सुनने का कष्ट करियेगा,अवश्य यह आपको अच्छा लगेगा।


11 comments:

  1. सच कहा आपने जादुई आवाज का जादू वास्तब में जबरदस्त है. साझा करने के लिये शुक्रिया.

    ReplyDelete
  2. रघुबीर को साधन जुटाने जगत के सारे शुभेच्छु दौड़े चले आते हैं, उन्हें विजय का उपाय जो आता है...

    ReplyDelete
  3. आपका व्‍यक्तित्‍व तो अद्भुत है, पहले तो आपको प्रणाम। फुर्सत से सुनती हूँ।

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग अत्यंत प्रेरणादायक हँ | दो त्रुटिसुधार करना चाहूँगा| यह प्रसंग लंकाकाण्ड का हँ उत्तर कांड का नही तथा पंडित छन्नूलाल मिश्र गोदई महाराज के पुत्र नहीं हैं|
    तारकेश्वर|

    ReplyDelete
    Replies
    1. चाचाजी त्रुटिसुधार के मार्गदर्शन हेतु आभार। पहली त्रुटि टाइपिंग की गलती है जो मैंने सुधार ली है। आपकी दूसरी इंगित त्रुटि के लिये मुझे पहले confirm करना होगा क्योंकि मेरी जानकारी के अनुसार तो छन्नूलाल मिश्र जी गुदईमहाराज जी के सुपुत्र हैं।

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
  5. वाह! इतना भक्तिमय,ज्ञानमय और संगीतमय आख्यान सुनकर हृदय
    तृप्त और आनन्दित हो गया है देवेन्द्र भाई.आप जैसे सन्त जन का सत्संग
    पारलौकिक सुख प्रदान करने वाला है.

    हार्दिक आभार और बहुत बहुत शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  6. आपकी रुचियां वास्तव में बहुत परिष्कृत हैं!

    ReplyDelete
  7. Devendra, Ramcharitmanas kaa pratyek prasang shikshaprad evam shantiprad hai. Pandit jee kaa gayan sampreshaniyata me bejod hai. G. K. Dwivedy

    ReplyDelete
  8. मै समझता हूँ , इस प्रसंग को जिसने आत्मसात किया वह है महात्मा गाँधी उन्होंने उसी तरह अपने आपको जप, तप और अहंकार से दूर रखकर रावण रूपी ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ाई लड़ी.

    ReplyDelete
  9. Mp3 डाऊनलोड नही हो रहा

    ReplyDelete