यह सन्नाटा क्यों बस्ती में,
वीरान शहर क्यों लगता है।
कल खूब मनी दिवाली थी,
क्यों आज अँधेरा जगता है ?1?
सब ओर बिछी है खामोशी
कुछ कहने में
है रुसवाई ?
वे आवाजे गुम हुई कहाँ, जो
कल तक थीं अलख जगाई ।2।
अब वे ही हैं गुमशुदा हुये,
जो मुझे यहाँ तक लाये थे।
वे आज जमीं की जद तकते,
जो चॉद पर पैर जमाये थे।3।
पत्थर भी मारा उसने ही ,
जो
शीशे के घर में हैं रहते ।
वे हमें गुनाही कहते, जो
खुद कत्लेआम किया करते।4।
रहे तड़पते प्यासे, जो खुद
कुयें पर पानी भरते थे।
नहीं मयस्सर दोगज़ कपड़े,
जो कफ़न सजाया करते थे।5।
कल मेले में जो बिछड़े थे ,
उनके मिलने की न खबर आई।
कलतक जो खुदमुख्तारी थे,
हैं आज़ वे लाचार सवालाई ।6।
कहते सुनते ही यह रात कटे,
या कुछ पल तो आँख लगेगी?
इक नयी सुबह औऱ नयी किरन,
जब कल जग की नींद खुलेगी।7।
उत्तर देने वाले दृग जब प्रश्न पूछें तो कुच कहना भी कठिन हो जाता है।
ReplyDeleteदिवाली, नयी सुबह, बस्ती, शहर, सन्नाटा
ReplyDeleteआप ने एक ही गीत में पूरा बवाल काटा!
बहुत खूब ...
ReplyDeleteशुक्रिया ।
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