छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।।
बैठे हो पहलू में मेरे ,दिल में यह ख्वाब जगे।।
बेखबर तारे हैं यह़ आसमान भी उनीदा है,
चाँद निकलेगा यह अरमान अभी जिंदा है।
पल दो पल का यह अनजान सफर तो नहीं,
ताउम्र रात की खातिर कई हसरतें बासिंदा हैं ।
आज क्यों सर्द,गैर-जुम्बिस ये कायनात लगे ।
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।1।
माथे की सिलवटों में दिखती कैसी यह उलझन है ?
पाँव में जकड़ी हुयी जंजीरों की अजीब रुनझुन है।
दास्तान अपनों से कलतक जो हम सुना न सके ,
गैरों से आज गाता रहा मन में लगी कैसी धुन है ?
तेरी
चौखट से भली तो रकीब-ए-दर खार लगे।
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।2।
यह लबों का दर्देगम या पैमाने की खामोशी है ,
इस मुस्कान के पीछे क्या छिपी कोई उदासी है ?
राह में मिलते हैं अब वे इक अजनबी की तरह,
उनका यह बेगानापन गोया जीते जी फाँसी है ।
मेरी रुसवाई में शामिल थे खुद मेरे अपने सगे।
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।3।
आफताबे सुर्ख किरन पूछें हर स़हर यह पता,
चाँद की नर्म किरन की सैर का इधर रस्ता,
एक तेरी ही थी कमी इस स़फर में, वरना तो
गुज़रे इस राह से कितने कारवाँ औ दस्ता ।
हर सुबह है लाये खुशी और नयी भाग्य जगे ,
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।4।
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।।
बैठे हो पहलू में मेरे ,दिल में यह ख्वाब जगे।।
छेड़ दो गीत कि यह शाम बहुत उदास लगे ।।
ReplyDeleteबैठे हो पहलू में मेरे ,दिल में यह ख्वाब जगे।।
वाह!!!!!! बहुत शानदार प्रस्तुति,..देवेन्द्र जी...क्या बात है
धन्यवाद धीरेंद्र जी।
Deleteबहुत गहराने लगती हैं आपकी पंक्तियाँ, धीरे धीरे हृदय में समाने लगती हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण जी।
Deleteवाह! शानदार नज़्म।
ReplyDeleteकुछ न पूछिये इस गीत को गुनगुनाने के मजे
बैठे हैं पहलू में मेरे तसव्वुर भी ये आने लगे।
धन्यवाद देवेन्द्र जी।
Deleteमन के भावों को सुंदर शब्द दिये हैं ....
ReplyDeleteसुंदर टिप्पड़ी के लिये आभार ।
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