(मेरी
यह रचना, जो मेरे ब्लॉग की 150वीं पोस्ट भी है, उम्र के पड़ाव पर तनहाई का दर्द सह रहे बुजुर्गों को समर्पित है । शायद
इस नज़्म के कुछ अल्फाज अकेले जिंदगी का सफर तय कर रहे बुजुर्गों को उनकी तनहाई व उदासी
के अहसासेगम में हमदर्द बन सकें ।)
आज रहते वहीं कितने तन्हा अकेले ,
जिनके हाथों ने थे आशियाने सजाये ।
नाखुदा बन हमारी किये परवरिस थे,
आज दिखते यूँ लाचार, बेजान साये ।1।
दिखती खामोश आँखें हैं उनकी सवाली
कल देतीं थी जो हर जबाबी इशारा ।
चेहरा कि मानो है गम का दरिया ,
बहे खुश्क पानी यूँ आखों से खारा ।2।
रखे
हाथ सिर पर हमारे दुआ का ,
सूरत हमारी अब देखने को तरसते।
थे लोरी से देते हमें चैन की नींद ,
बेचैनी पल-पल की खुद सहते रहते ।3।
किये बलिदान सुख सब हमारी ही खातिर,
हम मसरूफ यूँ कि न देखें भी मुड़के ।
बिठाकर हमें जिनपर दुनिया दिखायी ,
आज वे मजबूत
कंधे हैं बेबस झुके । 4।
कितने बचकानी मसले वे सुनते हमारे,
पर धीरज से उनका समाधान देते ।
हमसे पूछें जो वापस वे छोटी भी बातें ,
हम बड़े अनमने भाव वापस में देते ।5।
बोझिल सी हालात इस पड़ावेउमर की,
इक वीरान दरख्त की है खामोशी फैली।
पंछी उड़े
सारे कल बसेरा था जिनका,
झुर्रियों में छिपी उनके जिंदगी की पहेली।6।
जो उँगली पकड़ हम चलना थे सीखे,
पीड़ा तनहाई की आज वे हाथ सहते ।
रोशन किया हमें जो खुद को जलाकर,
उन बुझती शमा को बुढापा हैं कहते ।7।
बेहतरीन शब्दांजलि।
ReplyDeleteआपकी यह नज़्म पढ़कर अपनी कविता की कुछ लाइने याद आ रही हैं..
.............
धूप से बचे
छाँव में जले
कहीं ज़मी नहीं
पाँव के तले
नई हवा में
जोर इतना था
निवाले उड़ गए
थाली के ।
क्या कहें!
क्यों कहें!!
किससे कहें!!!
ज़ख्म गहरे हैं
माली के ।
इतनी सुंदर व हृदयस्पर्शी पंक्तियों के साथ टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteबोझिल सी हालात इस पड़ावेउमर की,
ReplyDeleteइक वीरान दरख्त की है खामोशी फैली।
पंछी उड़े सारे कल बसेरा था जिनका,
झुर्रियों में छिपी उनके जिंदगी की पहेली।
वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति,..
MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
कोई स्वीकार नहीं करता है पर यह एकान्त सबको वहन करना पड़ता है...
ReplyDelete१५० वीं पोस्ट की ढेरों शुभकामनायें।
जी सच कहा आपने। शुभकामनाओं हेतु आभार ।
Deleteशुभकामनायें
ReplyDeleteआभार।
Deleteमार्मिक रचना..........
ReplyDeleteदिल को छू गयी.
सादर.
अनु
आभार अनु ।
Deleteसच को कहती मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteटिप्पड़ी हेतु आभार। दुर्भाग्य से आज यह सच हमें जीना पड़ रहा है ।
ReplyDeleteSir,
ReplyDeleteYou are very smart.You have opted the right way to avoid negligence & loniness.You will be busy in writing & recollect the old memories by reading the old poems & stories.But still this situation can not be avoided completely but of course can be minimised.
Regard
Rajender