Innovation
यानि नवाचार आजकल प्रबंधन की बोलचाल की भाषा में प्रायः उपयोग में आने वाला शब्द है । एक रिपोर्ट के अनुसार तो विगत वर्षों में प्रबंधन वृत्त क्षेत्र में यह सबसे अधिक उपयोग में आने वाला शब्द रहा है ।
वैसे तो अंग्रेजी शब्दावली के अनुसार Innovation शब्द का शाब्दिक
अर्थ नवीनता से जुड़े अर्थ में अनेक निम्न शब्द जैसे- नवीनता ,नवीनीकरण ,नवपरिवर्तन,नयापन ,नवोत्थान
,नवोन्मेष ,नई खोज ,नई पद्धति इत्यादि हैं, किंतु मेरी समझ से हिंदी भाषा में इसके
लिये एक अति सार्थक शब्द लगता है – नवाचार और मैंने अपने इस लेख में इसी शब्द का
प्रयोग किया है ।
नवाचार के संबंध में मुझे एक अति
प्रासंगिक कथन महाभारत ग्रंथ का निम्नलिखित श्लोक लगता है-
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति,
विज्ञाय चार्थं भजते न कामात्।
नासंपृष्टो व्यपयुंक्ते परार्थे
तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य॥
विज्ञाय चार्थं भजते न कामात्।
नासंपृष्टो व्यपयुंक्ते परार्थे
तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य॥
यह कथन विदुर, जो रिश्ते में धृतराष्ट्र
के भाई व उनके नीतिमंत्री थे, ने धृतराष्ट्र को नीति की व्याख्या करते हुये एक बुद्धिमान
व्यक्ति के लक्षण व चरित्र के विश्लेषण में बताया था , जिसका भावार्थ इस प्रकार
है-
एक बुद्धिमान व्यक्ति की समझ अति
तीव्र, वह दूसरों
के बात व विचार को ध्यान से व धैर्य से सुनता है, वह उपलब्ध तथ्यों के आधार पर
ही अपनी समझ व धारणा बनाता है, न कि मात्र मनगढ़ंत स्वेच्छा द्वारा , वह दूसरे के
काम व जिम्मेदारी में तब तक टाँग नहीं अड़ाता, जब तक उसे कहा न जाय अथवा उसकी
नितांत आवश्यकता न हो, बुद्धिमान व्यक्ति के यह प्रधान लक्षण होते हैं ।
इसपर तो हम सब ही सहमत होंगे कि अस्सी के दसक के उत्तरार्ध
अथवा नब्बे के दसक के पूर्वार्ध में भारत में इन्फोसिस, विप्रो और टी.सी.यस. जैसी
सूचना तकनीकि कम्पनियों की स्थापना व उनके द्वारा अपनायी गयी व्यवसायिक पद्धति व
कार्यप्रणाली न सिर्फ भारत बल्कि अंतर्राष्ट्रीय उद्योग जगत में भी नवाचार की
अद्भुत उदाहरण थी और उनके इस नवोन्मुख व्यावसायिक व तकनीकि प्रणाली के सोच व अमल
ने संपूर्ण विश्व व्यवसाय जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया।यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी के अति आधुनिक सूचना तकनीकी
प्रणाली से समृद्ध जिस विश्व में हम रह रहे हैं, उसमें इन कंपनियों की अपनायी नवीन सोच
व कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
इन कंपनियों के संस्थापको व अगुआ,नेतृत्व-कर्ताओं-
श्री नारायणमूर्ति, अजिम प्रेमजी एवं अन्य, के प्रबंधन सिद्धांत, कौशल व रणनाति का
विश्लेषण करें तो हमें मिलेगा कि उपरोक्त नीति श्लोक में वर्णित सभी प्रधान गुण इन
महानुभावाओं में नैसर्गिक रूप से व कूट-कूट कर भरे थे । आज भी , भारत में अथवा
विश्व में कहीं भी, जो नयी-नयी कंम्पनियाँ नवाचारपूर्ण व्यवसायिक तौर तरीकों के
साथ उभर रही हैं व सफलता के नये आयाम स्थापित कर रही हैं , उनके नेतृत्व व प्रबंधन
कर्ताओं में इन्ही प्रधान गुणों की प्रधानता व महत्व है।
इसतरह, मेरे विचार से नवाचार का तात्पर्य इन्ही
बुद्धिमत्तापूर्ण गुणधर्मों को अपने कर्मक्षेत्र में पूरी ईमानदारी व शिद्दत से अपनाने से है । कुछ अति लोकप्रिय व सफल मुख्य
कार्य प्रबंधक जैसे श्री ई श्रीधरन, पूर्व मुख्य कार्य निदेशक दिल्ली मेट्रों रेल
कारपोरेसन , श्री यन. सिवसैलम, मुख्य कार्य निदेशक बंगलोर मेट्रों रेल कारपोरेसन,
जिनके साथ मुझे अपने प्रोफेसनल कैरियर में सन्निकट से कार्य करने का अवसर हुआ, के
कार्यप्रणाली व नेतृत्व शैली की मैं समीक्षा करता हूँ तो उनके नेतृत्व व प्रबंधन
नीति व प्रणाली में इन्ही बुद्धिमत्तापूर्ण गुणों की ही प्रधानता देखता हूँ ।
तो कह सकते हैं कि उच्चकोटि की उद्यमशीलता व व्यवसायिक
मानदंडों के अनुरूप उपलब्धि व इनके नये आयामों की स्थापना नवाचार पूर्ण गुणधर्मों
के ईमानदारी से अनुपालन द्वारा सर्वथा संभव है , और इन नवाचारों की उपलब्धि हेतु
आवश्यक है नीति अनुरुप बुद्धिमत्तापूर्ण कुशल व सक्षम प्रबंधन व नेतृत्व , जो खुले मस्तिष्क, सहज विवेक,टीम व
सहकर्मियों के साथ असीम धैर्य व विश्वास के गुणधर्मों पर आधारित होता है ।
हमारे सरकारी व सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में
संलग्न विभाग, जिनकी कार्यकुशलता , दक्षता, व उनकी व्यवसायिक व्यवहार्यता ( Viability) पर प्रायः
प्रश्नचिह्न उठते रहे हैं , और आज ये विभाग इन मोर्चों पर कठिन चुनौतियों व अपने अस्तित्व
के संकट का सामना कर रहे हैं, उनके नेतृत्व व प्रबंधन-कर्ताओं को इन
नवाचार व इसके आवश्यक गुणधर्मों के ईमानदारी व सही अर्थों में अनुपालन हेतु गम्भीरता
से विचार करने की आवश्यकता है ।
कार्यरत इंजन की आवाज बहुत कम होती है, जैसे कि लक्षण बताये गये हैं।
ReplyDeleteसटीक व सुंदर टिप्पड़ी हेतु आभार।
Deleteआशा है इसी क्रम में आगे कुछ और बातें आएंगी.
ReplyDeleteअवश्य राहुल जी।
Deleteगुणधर्मों के ईमानदारी व सही अर्थों में अनुपालन हेतु गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता अच्छी प्रस्तुति........
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
धन्यवाद धीरेंद्र जी ।
DeleteDD
ReplyDeleteIt is great innovative thinking and corelating to the already existing Indian Epic ie Mahabharat . This brings lot of depth
in you at intellectual level
thanks
Krishna Parihar
प्रोत्साहन हेतु आभार ।
Deleteचतुर एवं बुध्दिमान प्रबंधक के गुण आपने इतनी अच्छी तरह व्याख्या करके बताये हैं और उसका संदर्ब भी महाभारत से दिया है । आपके इस लेख की कायल हो गई हूं । काश सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के प्रबंधकों के लिये कोई ऐसा ही चतुर प्रबंधक कार्यशाला लगाये ।
ReplyDeleteआभार आशा जी ।
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