Saturday, April 7, 2012

खुशियाँ सौगात लायी हूँ मैं चाँदनी।



एक दिन चाँदनी रास्ते में मिली ,
पास आकर यह मुझसे कहने लगी ,
मैं आती हूँ अक्सर तुम्हारी गली,
हूँ हैरान  तुमसे कभी ना  मिली ।1।

बातें उसकी असर यूँ कि जादू की जैसा
मैं खड़ा देखता उसको ठिठका ठगा सा,
ऐसी उजली निगाहें मन हुआ बावला सा,
पूछ बैठा पता क्या ठिकाना और कैसा ।2।

बोली यूँ जैसे होठों पे मोती खिले-
शाम मुझको बुलाती जो सूरज ढले,
चाँद मेरा है घर वहीं से सवारी चले,
बाहें खोले जमीं से मैं मिलती गले।3।

मेरे चाँदी के रथ से हैं परियाँ उतरती,
नाचतीं मुस्कराती, मगन होती धरती ,
रातरानी जूही देख मुझको ही खिलती,
मेरी किरणों से गंगा अमृत की बहती । 4।

हूँ चमकती तो दुनिया है जन्नत लगे ,
फूलों को चूमती उनमें मधुरस पगे ,
देख मुझको मोहब्बत के अरमान जगे,
होते बेताब दिल और है नीयत डिगे ।5।

रात तनहा अकेली बड़ी स्याह होती ,
उसका आँचल बनी मैं ना जो बिखरती,
रोशनी के बिना कितनी गमगीन होती ,
न पहलू में खुशियों की मोती बिछाती। 6।

माँग मेरे सजी है सितारों की वेणी,
गीत शीतल हवा की मैं फिरती सुनी,
सेज मैं हूँ सजाती ले शबनम-मनी,
खुशियाँ सौगात लायी हूँ मैं चाँदनी।7।

10 comments:

  1. बातें उसकी असर यूँ कि जादू की जैसा
    मैं खड़ा देखता उसको ठिठका ठगा सा,
    ऐसी उजली निगाहें मन हुआ बावला सा,
    पूछ बैठा पता क्या ठिकाना और कैसा ।

    वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र जी।

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  2. अब तो आप चाँद से ही बतियाने लगे हैं, कोई विशेष विचार श्रंखला बहने वाली है।

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    1. मन के विचार कहीं न कहीं अपने श्रोत से ही तो जुड़े होते हैं। वैसे भी इस मन का स्वामी चंद्रमा ही है ।सुंदर व नवीन चिंतन को दिशा देती आपकी टिप्पड़ी हेतु आपका हार्दिक आभार ।

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  3. वाह...
    रात तनहा अकेली बड़ी स्याह होती ,
    उसका आँचल बनी मैं ना जो बिखरती,
    रोशनी के बिना कितनी गमगीन होती ,
    न पहलू में खुशियों की मोती बिछाती।

    बेहद खूबसूरत रचना....
    सादर.

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  4. वाह .... चाँदनी बिखेरती सुंदर रचना ...

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  5. धन्यवाद संगीता जी ।

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  6. आप तो चांदनी से बातें भी कर लेते हैं वाह । खुशियों की सौगात ही तो लाती है वह ।

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  7. वाह ! बहुत खुबसूरत रचना.
    बिलकुल चांदनी-सी शीतल कविता
    आभार

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