हे राम ! आप महान अतिशय और हृदय उदार थे।।
प्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे।।
यह धरा थी संत्रप्त जब दानवी अत्याचार से,
पाप से, पाखंड से, लोभ और अनाचार से,
निज-बाहुबल से दुष्टदल का नाश करके ,
ताडका, मारीच अगनित राक्षसों को मार करके,
शांति और सौहार्द का वातावरण स्थापित किये थे।
हे राम ! आप महान अतिशय और हृदय-उदार थे ।।
प्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे ।1।
विमाता कैकेई के कुआग्रह को सहज धारण किये,
परिवार की सुख शांति खातिर राजपद खाली किये।
पित-बचन पालन के लिये सहर्ष ही वन को गये,
भाइयों से प्रेम अद्भुत, सदा भातृत्वमय जीवन जिये ।
मित्र,भाई और प्रजा, सबके हृदय और प्राण थे।
हे राम ! आप महान अतिसय और हृदय-उदार थे।।
प्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे।2।
वरना इतर युग में रहे होते हमारी इस धरा पर
,
राजमद के दंभ में अनगिनत ही अनाचार तत्पर ।
राज्य छीना,छल
किया,विष दिया निज भाइयों को ,
बिन लड़े एकसूई नोक जमीन न दी पांडवों को ,
हठवशी उन कौरवों ने सगों से ही महाभारत किये
थे।
हे राम ! आप महान अतिशय और हृदय-उदार थे।।
प्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे।3।
शुभसंकल्प स्थापित करें प्रभु आप हम सबके हृदय
में ,
आचरण शालीन हो शत्रु पर भी मिलती विजय में ,
अशांत तप्त उर शुष्क में शांति की गंगा बहा दें,
विश्व मन को जीतने को प्रेम की सेना सजा दें,
हे प्राणनाथ करुणानिधान आप शांति अवतार थे ।
हे राम ! आप महान अतिशय और हृदय-उदार थे।।
प्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे।4।
हे राम ! आप महान अतिसय और हृदय-उदार थे।।
ReplyDeleteप्रेम,करुणा,शील,सनेह, दया के आप प्रभु आगार थे।
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
धन्यवाद धीरेंद्र जी।
Deleteहे राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है..
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