खरीददारी करना मुझे वैसा ही काम लगता है
जैसे अति व्यस्त ट्रैफिक वाली सड़क क्रॉस करना। इसलिये मैं बहुत ज्यादा सोचने, मोल-भाव
में वक्त बिताने के बजाय दुकान में घुसते ही अपनी पसंद और बजट पर सीधे आकर, झटपट
खरीददारी करके वहाँ से वैसे ही भागना पसंद करता हूँ जैसे सड़क के दोनों तरफ से आती तेज रफ्तार ट्रैफिक को ध्यान देकर
झटपट दौड़ते सड़क पार करना, फिर यूँ राहत की सांस लेते हैं मानो जान तो बची । मेरी इस झटपट की
खरीददारी मेरी पत्नीजी को बहुत अखरती है, क्योंकि उनके विचार में खरीददारी में
खर्च किये जा रहे पैसे की आधी कीमत तो चार
दुकान पर घूमकर सामान की जाँच परख करने और खूब मोलभाव करके सामान खरीदने से ही
वसूल होती है , और मेरी इस झटपट की खरीददारी से उनकी शॉपिंग का मजा अधूरा ही रह जाता है।
किंतु जब मैं किताब की दुकान पर जाता हूँ
तो मेरी यह झटपट खरीददारी की प्रवृत्ति पता नहीं कहाँ विलुप्त हो जाती है और मुझे
किताब की खरीददारी में घंटों तक मगजमारी करनी पड़ती है। कारण यह नहीं
कि कोई किताब पसंद नहीं आती अथवा किताबों की पसंद की समझ नहीं है बल्कि उल्टा है, यानि दुकान में सजी आधी
से ज्यादा किताबें पसंद आ जाती है, और फिर बड़ा ही कठिन काम
यह हो जाता है कि कौन सी किताब छोड़ें , क्योंकि एक तरफ बजट
की सीमा, दूसरी तरफ किताबों को साथ ढोने की समस्या, खासतौर से जब आप यात्रा पर हों और तीसरा कारण पत्नी जी के कोप का भाजन बनने
का खतरा, क्योंकि किताब पर पैसा खर्च करना,उनका बेमतलब बोझ ढोना या घर में संग्रह करना उनको मेरा सबसे फालतू और
झुंझलाहट वाला काम लगता है ।
कल मैं जरूरी काम से दिल्ली में था और शाम
की फ्लाइट से वापस लौटने का रिजर्वेसन कराया था। चूँकि दिल्ली लम्बे अतराल , लगभग
तीन वर्ष बाद आना हुआ इसलिये शाम को दो-तीन घंटे का समय चुराकर नयी दिल्ली रेलवे
स्टेशन से एयरपोर्ट तक की मेट्रो रेल एक्सप्रेस सेवा को देखने व उसपर यात्रा करने
का लोभ संवरण नहीं कर पाया, किंतु इस लालच को पूरा करने के चक्कर में मुझे भारी कीमत यह चुकानी पड़ी कि
मैं एयरपोर्ट पर चेक-इन के निर्धारित समय से दस मिनट बिलम्ब से पहुँचा और
एयरइंडिया ने पूरी बेरुखी दिखाते मुझे बोर्डिंग पास देने से मना कर दिया ( क्योंकि
नियमानुसार एयरोप्लेन के छूटने के समय के 45 मिनट पहले ही चेक-इन कर सकते हैं) ।
मैं मन ही मन तो बहुत कुढ़ रहा था गोया यह
सरासर एयरइंडिया की खलनायकी है, किंतु अंतत: समझौता तो मुझे ही करना था, अत: मैं
नतमस्तक ओर लाचार हो दूसरे दिन सुबह की फ्लाइट में रिबुकिंग कराया, और रात दिल्ली
में अपने रिश्तेदार के घर में बितानी पड़ी ।
सुबह एयरपोर्ट पर
फ्लाइट के निर्धारित समय से थोड़ा जल्दी पहुँचने के कारण, मेरे पास दो घंटे का
खाली समय था ,इसलिये समय का उपयोग एयरपोर्ट लाउंज में स्थित बुकशाप में घूमने और
पसंद की एक-दो किताब खरीदने में करना सबसे उपयुक्त कार्य लगा ।
सर्वप्रथम Latest Publication सेक्सन था।
इसमें दो तीन किताबे तुरत पसंद आ गयीं- जैसेः The Soul of Leadership by
Deepak Chopra ,A Romance with Chaos By Nishant Kaushik , Nothing can be as Crazy by Ajay Mohan , जिनका हाल ही में
रिवियु पढ़ा था व इनको पढ़ने हेतु मन में उत्सुकता थी. इन किताबों को छाँटकर साथ रखा और
आगे बढ़ा Autobiography section में । वहाँ पर दो तीन किताबे पसंद आ गयी- Ricky Martin Me, An Autobiography by Ricky Martin, As I see it by L.K. Adwani ( The collection
of blog posts of L K Adwani), Steve Job’s Biography । बगल की ही रेक में Spiritual section था , वहां भी एक पुस्तक The Speaking Tree- Distress
with Yoga and meditation , Times of India पसंद आयी । इन पसंद आयी पुस्तकों को भी छाँटकर साथ
रख लिया और आगे बढ़ा ।
दिमाग ने तो तुरत
सवाल खड़े शुरु खड़े कर दिये- भाई! यात्रा में हो, एक दो ही किताब तो खरीदना हे, सात पहले ही सिलेक्ट कर
चुके हो अब आगे क्या देखना है?
फिर भी उपलब्ध समय की निश्चिंतता के कारण मैंने अपने दिल और पसंद को वरियता देकर
अगले सेक्सन Economics and management books की ओर बढ़ा। यहाँ पर तो मेरे पसंद की कई किताबें थीं, जिनमें से – Outrageous Fortunes by
Daniel Altman खास तौर पर पसंद
आयी और इसे भी छाँटकर शापिंग कॉर्ट में रख लिया , और बगल में मैनेजमेंट बुक्स की
रेक की ओर बढ़ा।
इधर मन की
व्यग्रता बढ़ रही थी कि यह क्या मजाक है! लेनी है एक दो किताब और आठ तो पहले छाँट कर कॉर्ट में रख
ली हैं, अब क्या देखना है ? पर इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुये
मैंने चार-पाँच और पसंद आयी किताबों को छाँट लिया-The Toyota Talent by
Liker Talent,Inside CocaCola by Neville Isdell with David Beasley ( A
CEO’s Life Story of Building the most popular Brand), The Otherside of Innovation
by Govindrajan, When Genius Failed by Roger Lowenckin ( Rise and
Fall of Long term Capital management)। मैनेजमेंट सेक्सन
में और बगल के Motivation
Section से चार-पाँच और
किताबें पसंद आ गयीं और उन्हें भी shopping cart में रख लिया- Grow- How Ideals Power Growth and profit at the world’s 50 Greatest Companies by Jim Stengel, Outwitting the Devil
by Napoleon Hill, The 3rd Alternative – Solving life’s most
difficult problems by Stephen Covey, Never Too late to be great – The Power of
Thinking Long by Tom Butler Bowdon.
मेरी शॉपिंग कॉर्ट में लगभग 18-20 किताबें हो गयी थीं और मन लगभग विद्रोह की स्थिति में था अब बहुत हो गया, और अब सबसे बड़ी चुनौती तो यह कि इन पसंद आयी 18-20 किताबों में से ज्यादा से ज्यादा दो या तीन किताब ही खरीदनी हैं , किसको छोड़ूँ, वैसे भी Napoleon Hill और Covey की किताबें छोड़ना मेरे लिये उतना ही कठिन व दुःखदायी होता है, जितना कि किसी छोटे बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप या चॉकलेट छीन लेने से।
मेरी शॉपिंग कॉर्ट में लगभग 18-20 किताबें हो गयी थीं और मन लगभग विद्रोह की स्थिति में था अब बहुत हो गया, और अब सबसे बड़ी चुनौती तो यह कि इन पसंद आयी 18-20 किताबों में से ज्यादा से ज्यादा दो या तीन किताब ही खरीदनी हैं , किसको छोड़ूँ, वैसे भी Napoleon Hill और Covey की किताबें छोड़ना मेरे लिये उतना ही कठिन व दुःखदायी होता है, जितना कि किसी छोटे बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप या चॉकलेट छीन लेने से।
मन इस धर्मसंकट व
उहापोह से गुजर ही रहा था कि अचानक दृष्टि पास की बुक डिस्प्ले स्टैंड पर गयी जहां
Horward Business Review Publication की कई अच्छी व मेरे पसंदीदा विषय की किताबें थी- Negotiating Conflict Resolution,
Crisis Management, Managing Time और इनको भी छाँटकर शॉपिंग कॉर्ट में रखने से स्वयं को न रोक सका । इसी के
पास बच्चों का भी बुक स्टैंड था जहाँ अपनी बेटी के लिये दो किताबे पसंद आ गयीं और
उन्हें भी छाँट कर पास रख लिया – The story of Physics , The story of Mathematics by Anne
Rooney.
तब तक निगाह घड़ी
पर गयी और चौंका कि एयरोप्लेन की बोर्डिंग टाइम में मात्र पंद्रह मिनट बचे हैं । इस
तरह मैने दो घंटे बुकशॉप में कैसे बिता दिये, समय का पता ही नहीं चला।
जब असमंजस व
अनिर्णय की स्थिति हो और साथ ही साथ आप जल्दी में भी हो. , तो समय का अभाव कई बार
हमें शीघ्र निर्णय पर पहुँचने में काफी मददगार सिद्ध होता है। अतः समय की विवशता
को ध्यान में रखते मुझे उहापोह से बाहर निकल तुरत निर्णय लेना पडा और मैंने निम्न पुस्तकें खरीदने के उद्देश्य से अंततः
छांट ली-
1. The story of Physics, The
story of Mathematics by Anne Rooney
2. Inside Coca-Cola
3.
Managing Time
4.
Grow by Jim Stengel
5. Never Too late to be Great
by Tom
2. Inside Coca-Cola
बाकी किताबों को उनके
यथास्थान छोड़ , मैं बिल-काउंटर की ओर भारी मन से बढ़ गया क्योंकि अंततः मुझे अपनी
खास पसंद के लेखकों की ही किताबे- यानि Napoleon Hill and Stephen Kovey को ही छोड़ना पड़ा। शायद
उन्हे अगली बार खरीद सकूँ ।
बहुत अच्छा विश्लेषण किया।
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी ।
Deleteओह, हिन्दी एक भी नहीं.
ReplyDeleteराहुल दी, वहाँ हिंदी की पुस्तकें नहीं थी । वैसे पुस्तकें व ज्ञान भाषा की सीमा से मुक्त होते हैं । टिप्पड़ी हेतु सादर आभार ।
Deleteप्रभावी सुंदर विश्लेषण ...बेहतरीन पोस्ट
ReplyDelete.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
धन्यवाद धीरेंद्र जी ।
Delete:-)
ReplyDeleteसच्ची!!! किताबे देखने के बाद छोड़ने का जी नहीं करता.....
अगली शौपिंग और धमाकेदार करिये...
सादर
अनु
धन्यवाद अनु ।
Deleteओह मैँ अंत तक सोचता रहा कि आप Chaos वाली पुस्तक खरीद लेते, आजकल वही पढ़ रहा हूँ..मन में वही झेल रहा हूँ।
ReplyDeleteरिवियु पढ़ा हूँ , बहुत ही रोचक पुस्तक है व मन में बड़ी इच्छा है इसे पढ़ने की । आप पढ़ रहे हैं यह इच्छा और प्रबल हो गयी ।
Deleteक्या बात है.
ReplyDeleteआप का पुस्तक प्रेम कुछ खास ही है.
अच्छा लगा आपकी पुस्तकों की खरीदारी करना.
झटपट के बजाय अटक अटक कर.