लेट सेवेन्टीज में जब मैं जूनियर स्कूल
में पढ़ता था तो हर खास जगह- बस, ट्रक,ट्रैक्टर, सार्वजनिक
निर्माण विभाग के बोर्ड सभी जगह यह नारा लिखा रहता था- अनुशासन ही देश को महान
बनाता है । उन दिनों एक जूनियर स्कूल के विद्यार्थी के रूप में
अनुशासन के बारे में हमारी यही समझ होती थी कि साफ सुथरी यूनिफार्म पहन कर स्कूल
जाना,अध्यापकों के साथ विनम्रता व सम्मान के
साथ प्रस्तुत होना, अपना गृहकार्य समय से व साफ-सुथरे ढंग
से करना, कक्षा में शांति से बैठना व सहपाठियों
से लड़ाई-झगड़ा न करना । इसलिये उस समय यह नारा हमें पहेली की तरह लगता कि आखिर
अनुशासन से देश कैसे महान बन सकता है ।
फिर सीनियर स्कूल और कालेज में NCC ज्वाइन
करने के कारण डिपुटेसन पर तैनात भारतीय सेना के अधिकारियों के संरक्षण में जब
प्राय: परेड व कैम्प में हिस्सा लेना होता था , तब
निर्देशकों के कड़क आदेशों का कड़ाई से पालन करने,अपने सभी काम खुद करने, अपनी
वर्दी,जूते,बेल्ट साफ,पालिस कर चमकता रखने, पंक्तिवद्ध व सदा सजग होकर खड़े होने व
चलने जैसी आदतें अनुशासन के अध्याय के रूप में सीखने का अवसर मिला।
उम्र बढ़ने व जीवन-परिवेश के विस्तार के
साथ धीरे-धीरे यह बात अवश्य समझ में आने लगी कि किसी भी महत्वपूर्ण व चुनौतीपूर्ण
कार्य, चाहे वह कोई परीक्षा प्रतियोगिता हो
अथवा खेल की प्रतियोगिता ,
कड़े अनुशासन व श्रम की आवश्यकता होती
है- नियमित रूप से प्रतिदिन कई घंटे का कड़ा अभ्यास । हालाँकि स्वयं के अंदर जितना
अनुशासन होना चाहिये, उतना तो कभी नहीं रहा, यानि पढ़ाई में नियमित व कड़ी मेहनत तो
नहीं किये, हाँ जब सामने बड़ी चुनौती - परीक्षा
में फेल होने का डर अथवा प्रतियोगिता में
असफल होने का संकट आ जाता तो अवश्य ही अतिरिक्त श्रम करके येन केन प्रकारेण काम
यलाने में कमोवेस सफल ही रहे , हालाँकि
मन में मलाल तो है कि यदि जीवन में अनुशासन का पालन किया होता व अतिरिक्त श्रम
किया होता तो और अच्छा कर सकते थे । पर क्या करियेगा , कुछ इंसानी फितरत ही ऐसी है कि अनुशासन
व श्रम साधारण मनुष्य को उसी तरह नहीं भाते जिस तरह बिना नमक,तेल व मसाला की सब्जी । जीवन में श्रम
व अनुशासन के ऊपर कामचोरी व आलस्यपन प्रभावी हो जाता है , नियम संयम के ऊपर उन्माद व अल्हणपना
भारी पड़ता है ।
प्रायः तरुणावस्था व युवावस्था में
मनुष्य आलस्य, अन्माद व अल्हणपना का शिकार ज्यादा होता है । मुझे याद है दस बारह
वर्ष पूर्व जब और तब मैं इलाहाबाद में कार्यरत था, और मेरे दोनों बच्चे चार छः वर्ष
के थे , मैं उन्हे सुबह साढ़ेतीन-चार बजे नियमित रूप से घर से तीन-चार कीलोमीटर
दूर स्थित खेलग्राउंड पर जिमनास्टिक की कक्षा में ले जाता, वे भी चटपट तैयार हो
जाते व पूरी तत्परता व उत्साह से प्रैक्टिस करते । अब जब वे बड़े हो गये है,
उन्हें सुबह जगाने व सुबह की जॉगिंग पर भेजने के लिये मुझे उनके साथ भारी मसक्कत व
झिक-झिक करनी पड़ती है ।
बच्चों की बात छोड़ दें, तो हम सब देश
के एक आम नागरिक अथवा एक जिम्मेदार कर्मचारी के रूप में भी कौन सा अनुशासन पालन
करते हैं । सार्वजनिक स्थानों का दुरपयोग व सार्वजनिक नियमों व साधारण नागरिक के कर्तव्य-पालन
में प्रायः हीलाहवाली, कार्यालय में अथवा मीटिंग्स में कभी भी समय पर न पहुँचना,
दी गयी जिम्मेदारी व कार्य को समय पर पूरा न करना, कर्तव्यपरायणयता का अभाव व
भ्रष्टाचार में लिप्तता यदि हमारी अनुशासन हीनता नहीं तो और क्या है ।
यदि हम महान व्यक्तियों – जैसे अब्राहम
लिंकन, महात्मा गाँधी,विश्व प्रसिद्ध महान खिलाड़ी,कलाकार,संगीतकार , वैज्ञानिक,अन्वेषक,
लेखक, व्यवसायी, इत्यादि जो भी सफल व्यक्ति रहें हैं, उनके जीवनचरित्र का अध्ययन
करते हैं तो सबमें एक बात अवश्य समान मिलती है , वह है अनुशासन व अपने प्रोफेसन के
प्रति समर्पण व नियमित कड़ी मेहनत । गांधीजी का तो पूरा जीवन ही अनुशासन व कड़े
श्रम का जीवंत उदाहरण है ।हम अपने जीवन में जिन अभिनायकों व खिलाड़ियों- जैसे
अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, सचिन तेंदुलकर अथवा महेंद्र सिंह धोनी को भगवान की तरह
आदर व सम्मान करते हैं , उनके जीवन में सफलता की मुख्य विशेषता उनके जीवन में अनुशासन व कठिन श्रम के प्रति सदैव तत्परता ही
है ।
इस तरह अब यह बात तो अच्छी तरह से समझ
में आ गयी है कि अनुशासन ही हमारे अंदर की महानता व श्रेष्ठता को जागृत करता है और
हमें एक श्रेष्ठ व योग्य मनुष्य बनाता है , और यह तो स्वाभाविक ही है कि श्रेष्ठ व
योग्य मनुष्यों के पौरुष व योगदान से ही एक महान राष्ट् का निर्माण होता है ।
फिर भी , और चलते-चलते, यदि हल्के लहजे
की बात करें तो जीवन में थोड़ी मौजमस्ती, अत्हणपना का भी अपना आनंद है, वैसे ही जैसे खाने में
थोड़ा चटपटा,मिर्च मसाला भी उसके स्वाद में खासियत लाता है। पर ध्यान रखने की बात
है कि यह संतुलित व अपने कार्य के लक्ष्य के प्रति बिना लापरवाही व भटकाव के होना
चाहिये, ठीक उसी तरह जिस तरह का ज्ञान उस सुंदर युवती ने सिद्धार्थ गौतम को दिया था , जिसकी सीख से वे गौतम बुद्ध
बन गये-कि वीणा के तार को इतना भी न कसो कि यह
टूट जाये , और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि बजे ही नहीं ।
जिसकी सीख से वे गौतम बुद्ध बन गये-कि वीणा के तार को इतना भी न कसो कि यह टूट जाये , और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि बजे ही नहीं.....
ReplyDeleteअनुशासन से ही जीवन का मार्ग प्रसस्थ होता है,प्रेरक आलेख
आजकल तो आलस्य शब्द से सबसे अधिक प्रेम हैं, सबसे अधिक डराता भी यही शब्द है।
ReplyDeleteJo Soya So Khoya, Jo Jaaga So Paaya. No pains no gains.
ReplyDeleteठीक उसी तरह जिस तरह का ज्ञान उस सुंदर युवती ने सिद्धार्थ गौतम को दिया था , जिसकी सीख से वे गौतम बुद्ध बन गये-
ReplyDeleteवाह! सुन्दर स्त्री की सीख अति सुन्दर है.
यानि कोई भी स्त्री या पुरुष जीवन की सुंदरता का यथार्थ
समझ जाए तो वही सुन्दर है.
सुन्दर काण्ड में हनुमान जी की लीला भी तो अति सुन्दर है,
इसीलिए वह सुन्दर काण्ड है.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से आभार,देवेन्द्र जी.