उत्तर-उदारीकरण, पिछले दो दशकों में भारत मे तेजी से आर्थिक विकास के साथ- साथ, शहरीकरण भी बहुत ही उच्च गति के साथ हो रहा है. यह बड़े पैमाने पर , और बहुत ही असंगठित , असंरचित और तितर बितर शहरीकरण, न सिर्फ शहरी परिवहन के प्रबंधन मे गम्भीर चुनौती है , बल्कि वर्तमान शहर- यातायात बडे ही अराजक और हिसात्मक अवस्था मे है . राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति 2006 और विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार , इस समय भारत में कुछ 30 से अधिक शहरों मे आबादी दस लाख अधिक है (और उनमे से तीन की आबादी तो एक करोड से अधिक है और पाँच की आबादी 5 मिलियन से अधिक हैं ) किन्तु वे बुनियादी जन परिवहन प्रणाली से रहित है . अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और प्रथाओं, के अनुसार देखे तो इन शहरो मे वर्तमान परिवहन अव्यवस्था से निपटने के लिए जन पारगमन / मेट्रो रेल ट्रांजिट सिस्टम उपलब्ध कराने की तत्काल आवश्यकता है .
भारत मे मेट्रो रेल योजना व विकाश की मुख्य एजेंसी , डीएमआरसी, के अनुसार इस पैमाने पर बुनियादी जन परिवहन हेतु मेट्रो रेल प्रणाली सुविधाओं के निर्माण हेतु एक बहुत बड़े पूंजी निवेश , लगभग 2,50,000 लाख करोड रुपये (60 हजार करोड़ अमरीकी डालर) की जरूरत है . बुनियादी परिवहन सुविधाओं के विकास के वर्तमान व्यवस्था मुख्यतया सरकारी पूंजी निवेश पर आश्रित है, जो पहले से ही भारी राजकोषीय लागत और बहुत अक्षम और अपर्याप्त परियोजना क्रियान्वयन की क्षमता के खिलाफ संघर्ष कर रहा है . यह बहुत ही कठिन चुनौती है और यह स्पष्ट नजर आता है कि बिना निजी क्षेत्र की भारी भागीदारी के भारत में मेट्रो रेल जैसी बुनियादी जन परिवहन सुविधा का विकास नहीं किया जा सकता है.
साथ में ध्यान देते चले कि भूमंडलीकरण के उपरान्त , पिछले दो दशक बुनियादी ढांचे के विकास के संबंध में विश्व स्तर , उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विशेष रूप से और विकसित दुनिया के भी कुछ हिस्से में, पर बहुत ही रोमांचक और चुनौतीपूर्ण रहे है, के और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विकाश हेतु वित्तपोषण के कई innovating व भागीदारी आधारित तरीके उभरे है , उनमें से एक परियोजना वित्त ( Project Finance) है. नब्बे के दशक के बाद, लैटिन अमेरिका, यूरोप और पूर्व एशिया में , विशेष रूप ऊर्जा रोड, और मास परिवहन क्षेत्र में, परियोजना वित्त आधारित अनेक पीपीपी परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है. पिछले कुछ समय से, भारत मे भी बुनियादी सुविधाओं के योजनाकारों ने बुनियादी ढांचे , शहरी परिवहन बुनियादी ढांचे के विकास में विशेष रूप से, के विकास हेतु आने वाली परियोजनाओ मे निजी निवेश भागीदारी आधारित वित्त पोषण हेतु गंभीरता दिखायी है. पिछले कुछ वर्षों मे परियोजना वित्त पर आधारित कई मेट्रो रेल परियोजनाएँ जैसे मुंबई मेट्रो लाइन 1 और 2, हैदराबाद मेट्रो रेल, दिल्ली एक्सप्रेस रेलवे एयरपोर्ट लिक पीपीपी मेट्रो रेल परियोजनएँ, सानने आयी है, जिनके लिये सरकार द्वारा रियायत करार ( Concession Agreement) जारी किया गया , इन परियोजनाओं के निष्पादन का कार्य प्रगति पर है, और वे जल्द ही परिचालित भी होने जा रही है.
यह उल्लेखनीय है कि परियोजना वित्त परियोजना के वित्तपोषण का एक अभिनव तरीका जहां कैपिटल का अधिकांश भाग बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से गैर सहारा(Non-recourse) या सीमित सहारा (Limited recourse) ऋण के माध्यम से आता है, और बाकी अल्पभाग परियोजना डेवलपर्स / मालिकों / प्रायोजकों से सीमित इक्विटी योगदान से. बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से ऋण के लिए मुख्य सहारा परियोजना से होने वाले अपेक्षित दीर्घकालिक राजस्व नकदी प्रवाह( expected long term revenue cash flow) से होता है. इस प्रकार यह निजी क्षेत्र के डेवलपर्स व प्रायोजकों को उच्च पूंजी गहन( high capital intensive) मेट्रो रेल परियोजनाओं, के विकास के लिए उनके थोडे से ही इक्विटी भागीदारी व योगदान के एवज मे उन्हे उचित क्षमता और साथ ही साथ उच्च लाभ प्रदान करता है. इसके अलावा जन-- परिवहन परियोजनाएँ ,जो स्वभावत: सरकार की ओर से अतिरिक्त सहायता और मुक्त की भूमि पर निर्भर होती है, को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने के लिए सरकार को अतिरिक्त व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण(VGF) भी प्रदान करना पडता है.
हालांकि पीपीपी के साथ जुडे परियोजना वित्त के इस अतिरिक्त आयाम के कारण , एवँ VGF के एक्स कारक के साथ होने से ,इन परियोजना के रणनीतिक प्रबन्धन हेतु बहुत ही जटिल जोखिम प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता होती है जो कि सौदा भागीदारों और हितधारकों की एक बड़ी संख्या के बीच अंतर संबंध के साथ - साथ परियोजना प्रायोजकों, सरकार, बैंकों, परियोजना ठेकेदारों, स्थानीय सरकार और अन्य मंजूरी और परियोजना के लिए लाइसेंस के साथ संबंधित अधिकारियों व्यावसायिक व वैधानिक सन्तुलन बिठा सके. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि जोखिम प्रबंधन किसी भी वित्त परियोजना आधारित परियोजना के सफल कार्यान्वयन की जड़ है. गैर / सीमित सहारा ऋण की प्रकृति होने के अलावा, बैंक / उधारदाताओं को सुनिश्चित परिश्रम प्रक्रिया (Due Diligence Process) द्वारा , परियोजना के लिए अपनाई गयी दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में तकनीकी और वित्तीय व्यवहार्यता एवँ सुदृढ़ता बारे में सावधान होना है, साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करना है कि कैसे इस परियोजना के कार्यान्वयन और आजीवन नकदी प्रवाह, से जुड़े जोखिम को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से आवंटित किया जा रहा है, ताकि कोई अनिश्चितता या अनुचित घटना परियोजना के सुगम सँचालन व सफलता के रास्ते मे न आये और इस इसकी अनुमानित राजस्व पैदा करने की क्षमताओं को प्रभावित न कर सके .
हिन्दी में प्रबन्धन से सम्बन्धित उत्कृष्ट लेख। लेखनी की धार बनाये रखें।
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