मेरे कुछ मित्रों की मेरे ब्लाग पर लिखे कुछ लेखों पर प्रतिक्रियायें आयी हैं । मैं उन सब का हार्दिक आभार प्रगट करता हूँ । विशेषरूप से अपने प्रियमित्र व सहकर्मी प्रवीण पाण्डेय जी का जो मेरे इस हिन्दी में ब्लाग शुरू करने के प्रेरणाश्रोत भी हैं ।उनका प्रोत्साहन मेरे लिये महत्त्वपूर्ण व मायनेपूर्ण है ।
मेरे एक मित्र ने टिप्पडी की है कि लेख की भाषा क्लिष्ट है ( उनके शब्दो में – " समझने में कठिनाई हुई" । इस पर तो यही कह सकता हूँ- विचारों के मंथन व प्रवाह में जो शब्द आते जाते हैं उनका सहज प्रयोग लेखन में हो ही जाता है, अन्यथा कोई अतिरिक्त श्रम शब्द चयन हेतु नही किया है ।
मेरे उन्ही मित्र की एक और टिप्पडी – यदि ये हिन्दी लेख मेरे मौलिक प्रयाश हैं तो मुझे बधाई । तो इसके लिये तो यही करता हूँ कि उनकी दी बधाई मैं सहज रूप से स्वीकार ही कर लेता हूँ ।वैसे जहाँ तक मेरी समझ और दृष्टिकोण की बात है, तो मेरा सहज विश्वास यही है कि - स्वान्त: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।
बस मॉ शारदा से यही प्रार्थना है कि मेरे इस लघुप्रयाश की मौलिकता व निरन्तरता बनी रहे ।
आपके प्रयासों को दिशा मिल गयी है क्योंकि आपने लिखना प्रारम्भ कर दिया है।
ReplyDelete"स्वान्त: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा" आपका कहना सही है ,परन्तु ,तुलसीदासजी ने भी शुद्ध संस्कृत में न लिख कर लोकभाषा में अधिकाँश साहित्य लिखा.भाषा सरल हो तो भाव जल्दी पकड़ में आते हैं.और जैसा प्रवीण पाण्डेय जी ने सुझाया है.
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