Saturday, February 26, 2011

........ये फैले चादर बिस्तर के ।


बचपन की वह धमाचौकडी,
ऊधम, उठा पटक ,पटकम पटका,
सूँ फूँ ,ढिसुम विसुम,
गये दिनों की बातें हैं पर,
सबके गवाह रहे हैं,
ये फैले चादर बिस्तर के ।

लत्तम लत्ता , सिर फुडौवल,
रोमन कुश्ती सी धकड पकड,
बाल खींचना , गला चाँप,
भेडियाधसान , सिरचाँप,
सब बर्दास्त किया है इसने,
ये फैले चादर बिस्तर के ।

तकिया से गदायुद्द,
और रजाई लपट, जुत्थम जुत्थ,
साँस रोक देने वाला,
एक सिर के ऊपर चार खुत्थ,
सिकुडे, मुचमुचे से,अस्तव्यस्त,
ये फैले चादर बिस्तर के ।


अब जब सब शान्त सा है,
करीने से साफ सुथरे, बिना किसी सिलवट के,
यथास्थान , व्यवस्थित तकिया रजाई,
ना कोई धमाचौकडी,कोलाहल या शोर,
पर बहुत उदास से लगते हैं,
ये फैले चादर बिस्तर के ।

4 comments:

  1. बस, बचपन की चंचलता और अभी की नीरवता याद आ गयी।

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  2. तकिया से गदायुद्द,
    और रजाई लपट, जुत्थम जुत्थ,
    साँस रोक देने वाला,
    एक सिर के ऊपर चार खुत्थ,
    सिकुडे, मुचमुचे से,अस्तव्यस्त,
    ये फैले चादर बिस्तर के ।

    बचपन की सुंदर तस्वीर खींची है कविता के माध्यम से. बधायिया इस धमाचौकड़ी के लिए.

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  3. प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद रचना जी ।

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  4. मेरी एक पोस्‍ट पर श्री हेमंत वैष्‍णव जी की छत्‍तीसगढ़ी टिप्‍पणी आई थी-
    मजा आगे पढ़े म
    मन घूम के स्कुल म
    बाल भारती, गणित, पट्टी कलम, घनघोठहा
    चुमढ़ी के झोला, झिल्ली के मोरा, स्कुल जावत
    पान रोटी, अथान चुचरई
    चाबत कलर के बकरम
    दू बेनी, चेथी म, बोहावत तेल
    खपरा स्कुल, पीतल घंटी
    पराथना, जय हिंद गुरूजी, सरसती माता, महातमा गाँधी
    किताब, विद्यया , पांव पर बे
    फुटगे पट्टी, पटकिक पटका, एक्की छुट्टी
    आमा अमली, गिरई , लाठा
    खी, मी
    थोरिक रिस, छुट बकई
    कलम के क
    डउका कबे का ?
    रोगहा, बेसरम सुटी, कनबुच्ची
    एक एकम एक
    एक पंचे छै
    छुट्टी छुट्टी छुट्टी छुट्टी

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