लता मंगेशकर के मधुर व कर्णप्रिय गीत, अमिताभ का संजीदगी भरा अभिनय, सचिन की लयबद्ध बल्लेबाजी , मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की स्वाभाविकता वैसे हैं तो विभिन्न विधाएँ , किन्तु इन सबमें एक अद्भुत समानता है , और वह है उनकी अपने फन में सहजता।
राम का पौरुष व गाम्भीर्य, कृष्ण का स्मित माधुर्य, महात्मा बुद्ध का शान्त व योगलीन मुखमंडल,जीसस का करुणा व क्षमामयी मूर्ति, या किसी भी संत महात्मा की छवि या उनका मुखमंडल मन व हृदय में सुंदरतम आभाष देकर , अतीव सुख व शान्ति प्रदान करते हैं।कारण है इन सबकी स्वाभाविकता व सहजता। बालसुलभ हँसी की सहजता उसे हृदयंगम-रूप सुन्दर बना देती है,जबकि बडो की बनावटी,श्रमसाध्य व प्राय: टेढी व असहज हँसी देखने वाले के मन में कडवाहट ही लाती है ।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो किसी भी संकाय की स्वाभाविक व सहज स्थिति , उसमें स्थिरता व न्यूनतम उद्वेग की स्थिति लाती है, यानि सहजता ही शान्ति का कारक है । शान्ति ही शुभता की जननी है, शुभता व शुचिता( मनसा, वाचा व कर्मणा) में ही शिव का निवास होता है ।शिव ही सुन्दर है । तात्पर्य सहजता ही सुन्दरता की जन्म व निवास-स्थली है ।
हम अपने दैनन्दिन के कार्यकलापों में भी सहजता के महत्त्वपूर्ण व सूक्ष्म भूमिका को भलीभाँति अनुभव कर सकते हैं।चाहे खेल का मैदान हो या हमारे घर परिवार के मामले या आफिस कार्य व महत्त्वपूर्ण मीटिंग्स, सभी स्थिति-परिस्थियों में भागीदारों की सहजता व उनका सहज व्यवहार,इनके नतीजों या मिलने वाले परिणामों पर अति महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है ।खिलाडियों का खेल के नाजुक क्षणों में भी सहज रहना,घर-पारिवारिक जटिल व कठिन मामलों व यदा-कदा विपरीत परिस्थियों में सहजता व धैर्य बनाये रखना, आफिस कार्य व महत्त्वपूर्ण मीटिंग्स में उठने वाली असहमतियों,टकरावों व मतभेदों के दौरान सहजता बनाये रखना,स्थिति व परिणाम को नियंत्रण में रखता है , अन्यथा इन परिस्थितियों में तनिक भी असहजता व अधीरता, न सिर्फ वर्तमान टकराव व तनाव को बढा सकता है, वरन् यह भारी नुकसान व कुपरिणाम का कारण बन सकता है। यदि सच कहें तो सहजता ही हमारी हार और जीत के बीच का फर्क होता है ।
असहज व्यवहार न सिर्फ टकराव को बढाता व सौम्यता को घटाता है, बल्कि कुरूपता भी उत्पन्न करता है । असहज व्यवहार के दौरान हमारे शब्द,हमारा आचरण, हमारे हावभाव अति कुरूप हो जाते हैं , जो न सिर्फ स्वयं के लिये अशोभनीय है, अपितु सामने वाले को भी अति अप्रिय,अशुभ व घृणास्पद लग सकता है ।
इस तरह, अपनी सहजता को धारण कर हम अपने आचार-विचार व स्वरूप की सुन्दरता को कायम रख सकते हैं । हमारी सहजता में शिवता व स्वाभाविक सौन्दर्य का चिर-निवास होता है । हमारे सहजता की सुन्दरता अप्रतिम होती है । सहज रहें, सुन्दर रहें ।
जो जितना ऊपर उठता है, उतना ही सहज होता जाता है, उतना ही सुन्दर होता जाता है।
ReplyDeleteज्ञान की हाथी चढ़ै सहज दुशाला डारि, लेकिन आसान नहीं होती सहजता.
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