Tuesday, October 4, 2011

खतरों के खिलाड़ी




यदि समय अनुमति देता है तो मैं टीवी पर एक क्विज-प्रोग्राम 'कौन बनेगा करोड़पति' , जिसे अमिताभ बच्चन जी प्रस्तुत करते हैं, जरूर देखता हूँ। प्रोगाम के दौरान प्रतिभागियों को सहज व किसी तनाव से रहित रखने के लिये अमिताभ जी हॉटसीट पर बैठे व्यक्ति से जो बात-चीत करते है वह बड़ी ही रोचक होती है और साथ ही साथ दर्शकों की प्रोग्राम में रुचि बनाये रखने में मदद करती है।

कल के इपिसोड में हरियाणा की कोई गृहिणी महिला पधारी थी और उन्होने अपने जीवन के आलस्य-दर्शन पर बड़ी अद्भुत बातें कीं कि आप सोचने को बाध्य हो जायें कि संसार में ऐसे प्राणी भी हो सकते हैं जिनका जीवन दर्शन शुद्ध आलस्य पर आधारित है

किंतु वे महिला काफी हिम्मतवाली थीं, जहाँ हॉट सीट पर बैठकर और जबकि किसी एक उत्तर के ही सही या गलत होने से  एक बड़ी रकम के पाने या खोने का सवाल हो, प्रायः कोई भी प्रतिभागी उत्तर का अनुमान लगाने से घबराता है, और यदि किसी प्रश्न का  उत्तर आत्मविश्वास के साथ न मालूम हो तो वह खेल छोड़ देना पसंद करता है, वे महोदया धड़ाधड़ अनुमान लगातर उत्तर दे रही थीं।

जब तक उनका अनुमान से दिया गया उत्तर सही हो रहा था और उनकी ईनाम की रकम दुगुनी पर दुगुनी हो रही थी, तब तक तो हमारे द्वारा उनके लिये वाहवाही निकल रही थी- वाह क्या उम्दा खेल रही हैं,वाह क्या हिम्मत है। पर जैसे ही अगले प्रश्न में फिर से उनका अनुमान  से ही दिया गया उत्तर गलत निकला, और नतीजतन उनके जीते ईमाम की धनराशि 25 लाख से घटकर सीधे एक लाख साठ हजार की मामूली रकम पर गिर गयी, फिर तो उनका भी मुँह लटक गया और हमारे मुँह से भी यही निकला- अरे यह इसकी कितनी बड़ी बेवकूफी थी, जब उत्तर नही मालूम था तो अनुमान लगाने की क्या जरूरत थी, गेम छोड़ देना चाहिये था, जीता हुआ पच्चीस लाख रुपये ख्वामखाह अपनी बेवकूफी से गँवा दिया।

इसी तरह क्रिकेट के मैदान में भी प्रायः होता है। जब एक खिलाड़ी ताबड़तोड़ बल्ला भाँजते , चौका-छक्का मारते, ढेर सारा रन बनाते, अपनी टीम को जिता देता है, तो हमारे मुँह से यही वाहवाही निकलती है- वाह क्या उम्दा खेला, क्या धुँआधार बल्लेबाजी की, टीम का असली शेर व खेल जिताने वाला खिलाड़ी तो यही है, और वहीं खिलाड़ी अगली बार उसी अंदाज में खेलते , पहली गेद पर, या कहें तो मामूली रन बनाकर ही आउट हो जाता है, तो हमें यही लगता है कि उसकी यह क्या बेवकूफी और गैरजिम्मेदाराना हरकत थी, क्या थोड़ा रुककर, सँभलकर ध्यान से अपना विकेट बचाते नहीं खेल सकता था, इसकी लापरवाही से टीम हार गयी, यह तो टीम मे रहने लायक नहीं, इसे बाहर कर देना चाहिये।

इसी तरह व्यवसाय में भी होता है, कभी कुछ निर्णय बड़े सटीक बैठ जाते है,आवश्यक तकनीकी, कुशल मानव संसाधन, वित्त व्यवस्था, बाजार की परिस्थितियाँ सब अनुकूल होती है , और भारी मुनाफा और व्यवसाय की दिन-दूना रात चौगुना उन्नति हो रही होती है, और तब कम्पनी के मैनेजर्स, व्यवसायिक नीतियों की खूब वाह-वाही होती है। फिर अचानक कभी-कभी परिस्थितियाँ बदल जाती है, नयी या वैकल्पिक उत्पादन तकनीकों,वैश्विक वित्त व्यवस्था में आयी हलचल या लोच, ऐसे ही कुछ अनायाश, जिसका कभी अनुमान भी नहीं था, हो जाता है और सँभलने का मौका मिलने के पहले ही सब कुछ धराशायी हो जाता है।बना बनाया अच्छा खासा चल रहा व्यवसाय कुछ ही दिनों, अवधि में चौपट या समाप्त हो जाता है।

इसे प्रायः तो हम आमतौर पर अच्छी किस्मत या बुरी किस्मत कहकर, या अपना अच्छा या बुरा नसीब या नियति समझकर स्वीकार कर लेते हैं, अच्छा हुआ तो खुश होते हैं, और बुरा होता है ते दुःखी होता हैं, मातम मनाते हैं। किंतु प्रबंधन की भाषा में चर्चा करें तो इसे जोखिम (Risk) उठाना कहते हैं, और उच्च प्रबंधन कक्षाओं में जोखिम प्रबंधन (Risk Management) भावी प्रबंधकों को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।

तो चाहे क्विज खेल रहे हों, या क्रिकेट का खेल खेल रहे हों या अपना व्यवसाय चला रहे हों, कुछ नया व अलग, सामान्य से हट कर, करने या कुछ अतिरिक्त हासिल करने के लिये जोखिम उठाना पड़ता है या जोखिम से भरा फैसला करना पड़ता हे, जो कि आप को सामान्य की तुलना में अतिरिक्त आमद दे सकता है । जोखिम के एवज में मिली इस अतिरिक्त आमद को वित्तीय प्रबंधन में जोखिम लाभ ( Risk Dividend) कहते है।

पर ध्यान रहे यदि जोखिम का दाँव उल्टा पड़ गया, तो बजाय कोई लाभ मिलने के उल्टा भारी चपत भी लग सकती है,ठीक वैसा ही जैसा केबीसी में हिस्सा लेने वाली उन महोदया के साथ हुआ।


तो हमारे जीवन की सबसे बड़ी दुविधा ,चाहे जीवन का मैदान हो,या क्रिकेट का मैदान, कि जोखिम लें या न लें,और यदि लें तो कितना लें। प्रबंधन की सीख में इसीलिये प्रबंधकों द्वारा हमेशा जोखिम उठाने के पहले यथासंभव सारे पहलुओं की परख और नापतौल कर लेने, और इस विश्लेषण के उपरांत ही नपातुला जोखिम(Calculated Risk) उठाने की बात की जाती हैं।

हम सारी बातों का मूल-चूल यही निकाल सकते हैं कि जोखिम को हमेशा जोखिम ही बनाकर लें, आत्मघात की तरह नहीं। खतरों के खिलाड़ी बनें, उनके शिकार नहीं।  

6 comments:

  1. कौन चाहता है शिकार बनना, हरेक सोचता है कि वह खिलाड़ी है, लेकिन... होता क्‍या है, आपने बताया ही है.

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  2. जब वह आगे ले जाये तो गुण, नहीं तो बेवकूफी। बड़ी ही अनिश्चितता है दोनों के बीच।

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  3. बहुत ही सही बात कही है...
    risk तो हो पर calculative हो क्यूंकि risk लिए बिना जीवन कितना नीरस हो जाएगा...

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  4. कल 25 लाख से एक साठ पर आने वाला पुरुष था महिला नहीं। शायद उसका नाम इंद्रजीत था और वह पुलिस विभाग में कांस्‍टेबल था। आप सही कह रहे हैं कि सफल हो जाओ तो सबकुछ अच्‍छा और विफल हो जाओ तो ऐसा नहीं करना चाहिए था आदि आदि।

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  5. @ajit gupta टिप्पड़ी हेतु आर्थिक आभार। अजित जी, मैंने अपने लेख में जिस प्रतिभागी की चर्चा की है , वे 03.10.11 के इपिसोड में हरियाणा से आयी श्रीमती कमलेस हैं।

    @rashmi ravija आपने ठीक कहा, वैसे भी यदि कुछ अलग हटकर कुछ करना है, अथवा कुछ अतिरिक्त हासिल करना है, तो जोखिम तो उठाना ही पड़ता है।

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  6. जीवन के किसी भी क्षेत्र में हो हम अपना सर्वस्व लगाकर ही काम करते हैं लेकिन जब दांव उलटा पड जाता है तब स्वयं भी और अन्य सलाहकार भी यही कहते पाये जाते हैं कि Calculated Risk लेनी चाहिये थे. जब हम risk manage करके चल रहे थे तब अक्सर हम होशो हवास खो बैथते हैं. कुछ दांव सही बैठ जाये तो अगला दांव और बडा लगाते हैं और होता वही है कि Calculated Risk वाला फ़ण्डा दिमाग से बाहर हो जाता है. अब बजावो बैठ के घंटी, २५ लाख के होगये १.६० लाख.:)

    रामराम.

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