मेरे स्कूल के दिनों
में हमारे पड़ोस में एक सिख परिवार रहता था। परिवार में एक बुजुर्ग थे, जो बड़े ही
शांत व सरल स्वभाव के थे।जब तक सुबह हम सब सो कर उठते, तब तक वे गुरुद्वारे से लौट
कर आ चुके होते,या लौटते आते होते।गुरुद्वारे से लौटते वे हमारे लिये भोग का
प्रसाद-स्वादिस्ट हलवा अवश्य लाते। अपनी मीठी बालसुलभ स्मित मुस्कान के साथ हम सभी
बच्चों को थोड़-थोड़ा हलवा , अपने स्नेह भरे आशीष- ये लो पुत्तर , वाहे गुरु तुम
सब को चंगा रखे, के साथ खाने को देते। उनका यह स्नेहाशीष व प्रसाद का हलवा हमारा
हर दिन खूबसूरत,प्रसन्न व धन्य बना देता।
हम बच्चे जहाँ सुबह
स्कूल के लिये जाने के लिये तैयार होते , या स्कूल की छुट्टी होती तो खेल या
धमाचौकड़ी में व्यस्त हो जाते, वही सरदार जी बरामदे में रखी तखत पर आराम से पल्थी
मारे बैठे जहाँ हम बच्चों के क्रियाकलाप पर एक आत्मीय दृष्टि रखते, वहीं मन व
सच्ची भावना में वाहे-गुरु के सिमरन में मगन वे बड़े सुंदर लय व कंठ से गुरबानी का
पाठ दुहराते।
मुझे उनका गुरबानी
का पाठ बड़ा आकर्षित करता, मैं उनके पास तख्त पर बैठे घंटो तक उन्हे गुरबानी गाते
सुनता ।वे भी गाते-गाते, मुझे अपनी ओर
एकटक ध्यान से देखते देखकर अपनी संतों जैसी दाढ़ी व मूँछ के पीछे अपनी स्निग्ध
मुस्कान विखेरते अपना हाथ हमारे सिर पर आशीष देने की मुद्रा में फेरते, तो ऐसा
अनुभव होता मानों हम स्नेह की शीतल वृष्टि में स्नान कर रहे हों।
कभी बालसुलभ
उत्सुकतावश मैंने पूछा कि आप क्या गाते हैं तो उन्होने बताया- पुत्तर यह सुखमनी
है।यह गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र बानी है। इसे पाँचवे सिक्ख गुरु , गुरु अर्जन
देव ने रचित किया था।इसे गौरी सुखमनी भी कहते हैं, क्योंकि इस बानी को राग गौरी
में गाने का विधान है। फिर सुखमनी का मतलब समझाते हुये बताते- सुख माने शांति और मनि
माने मन यानि मन कि शांति।
इसमें कुल चौबीस अष्टपदी है। अष्टपदी यानि आठ पदों वाली और हर पद में पाँच चौपायी या दस पंक्तियाँ होती हैं।हर अष्टपदी के पहले प्रभु की स्तुति में एक श्लोक है।
इसमें कुल चौबीस अष्टपदी है। अष्टपदी यानि आठ पदों वाली और हर पद में पाँच चौपायी या दस पंक्तियाँ होती हैं।हर अष्टपदी के पहले प्रभु की स्तुति में एक श्लोक है।
सरदार जी की गायी सुखमनी
की कुछ पंक्तियाँ,कई बार सुनने के अभ्यास से मुझे कंठस्थ सी हो गयी थीं। बत्तीस वर्ष से
ज्यादा वक्त बीतने पर भी सरदार जी के गुरुबानी के वे गाये शब्द अब भी मेरे मन में अनायाश,
और विशेष रुप से जब किसी गुरद्वारे में जाने का सौभाग्य मिलता है, तो मीठे स्वर
में गुंजित हो उठते हैं, और ऐसा अनुभव होता है कि सरदारजी सुखमनी के पद गाते स्नेहाशीष से मेरे सिर पर हाथ फेर रहे हैं।
गौरी
सुखमनी
असटपदी-1
श्लोक
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आदि गुरए नमह ॥
जुगादि गुरए नमह ॥
सति
गुरए नमह ॥
स्री गुरदेवए नमह ॥१॥
असटपदी
सिमरउ
सिमरि सिमरि सुखु पावउ।
कलि
कलेस तन माहि मिटावउ।
सिमरउ
जाउ बिसुमभर एकै।
नामु
जपत अगनत अनेकै।
बेद
पुरान सिम्रिति सुधाख्यर।
कीने
राम नाम इक आख्यर।
किनका
एक जिसु जीअ बसावै।
ता
की महिमा गनी न आवै।
काँखी
एकै दरस तुहारो।
नानक
उन संगि मोहि उधारो।1।
सुखमनी
सुख अम्रित प्रभ नामु।
भगत
जना कै मनि बिश्राम।
प्रभ
के सिमरनि गरभि न बसै।
प्रभ
के सिमरनि दूखु जमु नसै।
प्रभ
कै सिमरनि कालु परहरै।
प्रभ
के सिमरनि दुसमनु टरै।
प्रभ
के सिमरत बिघनु न लागै।
प्रभ
कै सिमरनि अनदिनु जागै।
प्रभ
के सिमरनि भउ न बिआपै।
प्रभ
के सिमरनि दुखु न संतापै।2।
प्रभ
का सिमरनु साध के संगि।
सरब
निधान नानक हरि रंगि।
प्रभ
कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि।
प्रभ
कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि।
प्रभ
कै सिमरनि जप तप पूजा।
प्रभ
कै सिमरनि बिनसै दूजा।
प्रभ
कै सिमरनि तीरथ इसनानी।
प्रभ
के सिमरनि दरगह मानी।
प्रभ
के सिमरनि होइ सु भला।
प्रभ
के सिमरनि सुफल फला।
के
सिमरहि जिन आपि सिमराए।
नानक
ता कै लागउ पाए।3।
प्रभ
का सिमरनु सभ ते ऊँचा।
प्रभ
कै सिमरनि उधरे मूचा।
प्रभ
कै सिमरनि त्रिसना बुझै।
प्रभ
कै सिमरनि सभु किछु सुझै।
प्रभ
कै सिमरनि नाही जम त्रासा।
प्रभ
कै सिमरनि पूरन आसा।
प्रभ
कै सिमरन मन की मलु जाइ।
अम्रित
नाम रिद माहि समाइ।
प्रभ
जी बसहि साध की रसना।
नानक
जन का दासनि दसना।4।
प्रभ
कउ सिमरहि से धनवंते।
प्रभ
कउ सिमरहि से पतिवंते।
प्रभ
कउ सिमरहि से जनपरवान।
प्रभ
कउ सिमरहि से पुरख प्रधान
प्रभ
कउ सिमरहि सि बेमुहताजे।
प्रभ
कउ सिमरहि सि सरब के राजे।
प्रभ
कउ सिमरहि से सुखबासी।
प्रभ
कउ सिमरहि सदा अबिनासी।
सिमरन
ते लागे जिन आप दइआला।
नानक
जन की मंगै रवाला।5।
प्रभ
कउ सिमरहि से परउपकारी।
प्रभ
कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी।
प्रभ
कउ सिमरहि से मुख सुहावे।
प्रभ
कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै।
प्रभ
कउ सिमरहि तिन आतमु जीता।
प्रभ
कउ सिमरहि तिन निरमल रीता।
प्रभ
कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे।
प्रभ
कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे।
संत
कृपा ते अनदिनु जागि।
नानक
सिमरनु पूरै भागि।6।
प्रभ
कै सिमरनि कारज पूरे।
प्रभ
कै सिमरनि कबहु न झूरे।
प्रभ
कै सिमरनि हरि गुन बानी।
प्रभ
कै सिमरनि सहज समानी।
प्रभ
कै सिमरनि निहचल आसनु।
प्रभ
कै सिमरनि कमल बिगासनु।
प्रभ
कै सिमरनि अनहद झुनकार।
सुखु
प्रभ सिमरन का अंतु न पार।
सिमरन
से जन जिन कउ प्रभ मइया।
नानक
तिन जन सरनी पइया।7।
हरि
सिमरनु करि भगत प्रगटाये।
हरि
सिमरनि लगि बेद उपाये।
हरि
सिमरनि भए सिध जती दाते।
हरि
सिमरनि नीच चह कुंट जाते।
हरि
सिमरनि धारी सभ धरना।
सिमरि
सिमरि हरि कारन करना।
हरि
सिमरनि कीओ सगल अकारा।
हरि
सिमरन महि आपि निरंकारा।
करि
किरपा जिसु आपि बुझाइआ।
नानक
गुरुमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ।8।
आभार आपका ! धुन सुनने की इच्छा है ...
ReplyDeleteगुरुग्रंथ साहिब को प्रणाम।
ReplyDeleteहरि सिमरन ही मूल है, भाषा धर्म अनेक।
ReplyDelete@Archana : You can listen it on you tube Sukhmani Sahib - Sikh Prayer Part 1
ReplyDelete@ Archana : You can listen it on you tube Sukhmani Sahib - Sikh Prayer Part 1
ReplyDeleteMAMANUSMARA YUDHYA CHA.
ReplyDeletegurudware ki shanti,gurugranth sahib ki dhun hamesha se bahut achchi lagti hn par uske baare me itna jaanne ka avsar pehli baar mila, thanx a lot....
ReplyDeletebeautifully written