हमने निज प्रिय भवन बनाया।
तिक्त हुआ निज प्रेम भाव क्यों,
दृढ़ विश्वास क्यों छीज गया?
खायी थी मैंने जो कसमें,
खायी थी तुमने जो कसमें
क्या सब झूठे वादे थे वे ,
कि रहते इकदूजे के दिल में?
बिन शर्तों
हम तुमपर मरते
मुझपर तुम मरते बिन-शर्तों
कल तक उभय समाहित थे जो
बटते क्यों हम परतों-परतों?
माना राह कठिन जीवन की
कुछ दुख-काँटे मिले राहों में
प्रेमोष्मा वह भूल गये हम
जब सुख से पिघले थे बाहों में?
तुम मेरे अधरों की भाषा,और
मैं जाना तव नयन इशारे।
वह संवाद कहाँ खो-ओझल
क्यों अब मौन शब्द है सारे?
दिल पर हाथ रखा प्रिय मैंने
हूँ तेरी ही प्रतिध्वनि सुनता।
जीवन-साँसों की यात्रा में
तुझको ही गतिमय हूँ पाता ।
हर चलती श्वासों से दोनों
पुनः करें यह संकल्प अमर।
निजविश्वास के प्रेम-भवन में
साथ रहें हरपल जीवनभर।
आज हृदय का कौन मौन बह निकला है,
ReplyDeleteजब झगड़ा हो तो सुनाना पड़ेगा। आपने पढ़ाया कि नहीं?
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