युवावस्था में जगजीत सिंह ( फोटोग्राफ वाइकिपिडिया के सौजन्य से) |
जगजीत सिंह (1941-2011) नहीं रहे। अपनी गजलों
से अपनी आवाज की शहद जैसी मिठास व ताजा खिले फूलों की मुस्कराहट बिखेरते,
परंतु जाती जिंदगी में ढेर सारे गमों को चुपचाप सहते,छुपाते वे 'जाने कौन से देश चले
गये' ।
व्यक्तिगत स्तर पर तो मेरी ऐसी योग्यता नहीं,
न तो गजल विधा की ही और न तो प्रसिद्ध गजल गायकों के बारे में जानकारी,
कि मैं जगजीत सिंह के बारे में कुछ कहूँ या लिखूँ, किंतु उनके एक अनजाने
प्रशंसक के रूप में, उनकी गजलों के एक साधारण
श्रोता के रूप में यही कह सकता हूँ कि वे गजल-गायकी के स्टीव जाँब्स थे।भारत में
गजल गायकी, जो कि पहले एक खास वर्ग और तबके के श्रोताओं के लिये हुआ करती थी,वहाँ गजल व गीत के
अद्भुत संगम से उन्होने गजल गायकी व उसके श्रोता वर्ग व प्रेमियों में एक नयी क्रांति सी लायी।
उन्होने गजल को भारतीय आम गीत श्रोता का पसंदीदा व उसे गजल-गीतों का दीवाना बना दिया।
ऐसा नहीं कि उनका रास्ता आसान था,इसके लिये उन्हे भारी
शुरुआती आलोचना, कि गोया उन्हें गजल
गायगी की न तो कोई समझ व शऊर है, बल्कि उनके पास ना तो
गजल गायकी की कोई काबिलियत, ना गजल गाने के माफिक खुदा की नेमत आवाज ही है,
का भी सामना करना पड़ा, किंतु वे अपनी सोच,अपनी काबिलियत और
भारतीय जनमानस में पूरा विश्वास रखते हुये आगे बढ़ते रहे,अपने मकसद में कामयाब
रहे,और एकदिन भारत के गजल-सुल्तान के रूप में हमारे दिल में
साम्राज्य स्थापित कर लिये।
अस्सी के दशक के उत्तरार्ध जब मैं कॉलेज के छात्र था,
उसके पहले ही उनकी गजल गायकी व फिल्मों में गाये उनके गीत युवाओं पर
जादू करने लगे थे- फिल्म प्रेमगीत का उनका गाया गीत-“होठों से छू लो
तुम...” तो इतना पॉपुलर था
कि कॉलेज हॉस्टल में देर रात को हमारी हुड़दंग भरी संगीत सभा का समापन इसी गीत के
कोरसगान से ही होता।
इसी तरह उनके ‘अर्थ’ व ‘साथ-साथ’ फिल्मों में गाये
गजल-गीत- 'झुकी झुकी सी नजर','तुम इतना जो मुस्कुरा
रहे हो', 'प्यार मुझसे जो किया तुमने',
'तुम को देखा तो ये खयाल आया',ये तेरा घर ये मेरा
घर' इतने पॉपुलर थे कि चाहे हम अकेले हों या ग्रुप में ये गाने तो
बस होठों पर अनायास ही हमारे गुनगुनाने में आ जाते।
1988 में टीवी सीरियल
मिर्जा गालिब में जगजीत ने मिर्जा गालिब की गजलों को कुछ ऐसा निभाया कि अब जेहन
में जब भी मिर्जा गालिब की कोई गजल आती है, तो उसकी सोच के
साथ-साथ जगजीत की आवाज में ही वह गजल मस्तिष्क में उभरती है,यानी मिर्जा गालिब की
गजल व जगजीत सिंह दोनों एक दूसरे के पूरक के रूप में सदैव के लिये हमारे जेहन में
स्थापित हो गये हैं।
हालाँकि गृहस्थ जीवन के संघर्ष में, हमारे कॉलेज के दिनों के वे कोमल शौक-गजल,शायरी,गीत,पढ़ाई धीरे-धीरे धुँधलाते
चले गये,किंतु जितना अब भी कमोवेश उनको निभा पाता रहा ,उनमें जगजीत सिंह की
गजलें अवश्य दिल के सन्निकट बनी रहीं। उनके बाद में आये अलबम- होप,इन सर्च,इनसाइट,मिराज,कहकसाँ,चिराग,सजदा,मरासिम,फेस टू फेस,आईना मेरीखास पसंद
रहे और इनके रिकार्ड कैसेट्स व सीडी अभी भी मेरे साथ व प्रिय कलेक्सन्स हैं।
जगजीत व चित्रा को ड्वैट में सुनना संगीत के चरम, सुंदरतम व
सुखदतम, अनुभव में होता था किंतु दुर्भाग्य से वर्ष 1990
में इनके इकलौते बेटे विवेक की अकाल मृत्यु से आहतमन चित्रा ने
हमेशा के लिये गायन के प्रति मौन धारण कर लिया, फिर तो उन दोनों का साथ गाना बस पुरानी यादों की ही बात रह गयी।
बाद में जगजीत के भजन
के अलबम- हे राम हे राम,माँ,हरे कृष्णा और कई
अनेक आये,जो मेरे पसंदीदा भजन
गीत संग्रह में हैं।छुट्टी के दिन फुरसत में इन भजनों को दिनभर रिपीट कर बार बार
सुनने की मेरी आदत से मेरी पत्नी और बच्चे खूब कुढते रहे हैं, पर मैं अपनी इस आदत व कमजोरी को नहीं बदल पाता।
जगजीत सिंह नहीं रहे, यह सोच सोच कर मन उदास हो गया है, पर अपनी सुंदर आवाज के रूप में वे अमर हैं और हमारे साथ आजीवन
रहेंगे। उनको उन्ही की गायी इक गजल की एक पंक्ति के साथ नमन व हार्दिक
श्रद्धांजलि- तू नही तो जिंदगी में और
क्या रह जायेगा।
गजल का चित्रकार चला गया।
ReplyDeletea a few person are never out of mind after they out of sight.
ReplyDeleteA few person are never out of mind after they out of sight.
ReplyDeleteAnil Dahiya