तुम क्यों कुंठित हो,
अवसादित हो,
जीवन तो संघर्ष डगर है,
पग-पग पर यह राह कठिन है,
नयी चुनौती,नये थपेड़े,
छाते है घन श्याम अँधेरे।
पर सोचो!
क्या तुम मात्र अकेले,
दुख सारे क्या तुम बस झेले?
नियति ने
खेल है हर संग खेला,
सब निर्वाह करें यह झमेला।
तम जो है तो तारे-चंदा भी,
हर रात्रि की गति शुभप्रभात ही,
तप्त गृष्म वृष्टि से अनुपूरित,
पतझड़ से बसंत अभिप्रेरित ,
जीवन है एक चक्रगति पहिया,
तो क्षोभ क्या, प्रतिरोध क्या,
अवसाद क्या,अवमान क्या
बनकर रहो निस्पृह दुःखों से,
निरपेक्ष हो इन क्षणिक सुखों से,
हो संतुलित,द्रष्टाभावमय,
स्थिर बनो हर काल में,
प्रसन्न हो,भयमुक्त हो,
निरवसाद हो,निष्ताप हो,
यह सौभाग्य ही तव नियति हो।
अस्तित्व के हल्केपन को जीवन में अपनाना होगा।
ReplyDeleteNice one ,
ReplyDeleteSeems this one for us..