जो मुरझाये,मलीन
से सकुचे थे,
वे प्रात: किरणों में खिल-निखरे हैं।
रखना सहेज हर जर्रे को
हर वादी में मोती बिखरे हैं।1।
जिनको देखा था खुली आँख
अब वे ही सच्चे सपने हैं।
जिनको नजरअंदाज किया मैंने,
तंगहाल दिनों में वे अपने हैं ।2।
जो मौन म्यान में सदियों से,
हथियार चमकते फड़के हैं।
जो बुझकर राख बने थे कल
वे शोले बनकर भड़के हैं।3।
कल दर से खाली लौटाये थे,
वे आज सजा सिंहासन देते हैं ।
जो साने पर हाथ न देते थे,
अब बाहों में भर लेते हैं।4।
खामोश अनसुने थे जो कल
वे अब आवाज बुलंदी नारे हैं।
हासिये पर जो बैठा तनहा था
कारवाँ बना संग सारे हैं।5।
इतिहास लिखा करते थे जो कल
इतिहास खुद बन गये आज।
खुद जो बाजशिकारी बनते थे
चूहा बने, चोंच
में लिया बाज।6।
जो गूँथ रहा है मिट्टी को
खुद को मुशव्विर समझता है।
इक दिन गूथेगी मिट्टी हमको
'फक्कड़' कबीर यह कहता है।7।
कबीर सच ही कह गये हैं, मट्टी सबको रौंदेगी।
ReplyDeleteजिनको देखा था खुली आँख
ReplyDeleteअब वे ही सच्चे सपने हैं।
जिनको नजरअंदाज किया मैंने,
तंगहाल दिनों में वे अपने हैं ...
बहुत खूब ... सच कहा है खुली आखों से देखे सपने जरूर सच होते हैं ... कहीकत को शब्द दिए हैं ...