Sunday, October 23, 2011

समय की वह धार हूँ मैं.......


खींचता प्रस्तर-पटल पर अमिट रेखा,
समय की वह धार हूँ मैं।



मन जलधि को मथ रहा ज्ञान वासुकी से
मस्तिष्क का चिंतन-विचार हूँ मैं।

वेदना के बादलों की कोख में घनीभूत हो,
नयन से छलकी  हुई अश्रु-बूँद हूँ मैं।



वादियों के शोर और तूफान से निरा अपरिचित,
खामोश सी कोमल तरंगित शीतल वात हूँ मैं।

युग-युगों की वेदना से मनुजता जो चित्कार करती,
अनसुनी,दिल में दबी वह आह हूँ मैं।



चल रहा कृत्य-अपकृत्य का संघर्ष निरंतर
मनुजता को खे रहा पतवार हूँ मैं।

4 comments:

  1. समय की धार में बहते हुये, हर रोज उतराते रहे।

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  2. वादियों के शोर और तूफान से निरा अपरिचित,
    खामोश सी कोमल तरंगित शीतल वात हूँ मैं।

    बहुत खूब ......!

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  3. बेहतरीन..
    आज ते बदले-बदले सरकार नज़र आते हैं।

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  4. खींचता प्रस्तर-पटल पर अमिट रेखा,
    समय की वह धार हूँ मैं।
    क्या कहूँ अब. निःशब्द कर दिया आपने तो.
    आपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें

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