आज विजयदशमी के उल्लास-पर्व पर भगवान राम के शुभ-चरित्र वर्णन करती मेरी यह छोटी सी, तुच्छ-भेंट सभी पाठकगणों की मंगलकामना के साथ प्रभु राम के चरणों में अर्पित है।
माता,पिता ,गुरु-वचन का
आदर किया मैं,
बन्धु,भाई,प्रिय,सखा
सबको स्नेहित किया मैं,
हूँ सहज,गम्भीर,सुशील,
उदार,
अति
स्नेहिल हृदय।
किंतु
हूँ निर्भयमना,
हों हहरती विषम परिस्थितियाँ
भी सामने जो,
पिता के दिये वचन व मान खातिर,
चाहे राजपाट त्याग की बात हो,
या घोर राक्षस शत्रु,
ताड़का,मारीच,खर-दूषण या रावण,
सामने ललकारते हों,
पर मैं रहा निर्द्वंद,निडर,निर्वसाद,
डटकर सामना करता हूं मैं हर शत्रु का।
क्या नदी,
क्या गहन वन,
क्या अनंत विस्तारित जलधि,
कोई न पाया रोक
मेरे विजय के संकल्प को।
पर अति सहज,
दीनबंधु,करुणाहृदय,
सखाहृदय,भातृत्व मन,
माता-पिता का लाडला
दशरथ,कौसल्या नंदन,
मैं
राम हूँ।
राम तो कभी अपने लिये जिये ही नहीं।
ReplyDeleteआज चारो तरफ रावण ही रावण है इसलिए आज राम हर किसी को बनना ही परेगा और पूरी ताकत से रावणों का बध करना भी परेगा.....इंसानियत को बचाने का यही एक तरीका बचा है अब ....
ReplyDeleteइस देश में राम भी बहुत हैं लेकिन रावण उन्हें भी अपने जैसा ही सिद्ध करने पर लगा है। जनता अन्तर नहीं कर पा रही है।
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