मेरी
एक सहपाठी मित्र, जो
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मेरे साथ पढ़ती थीं, कुछ दिन पूर्व ही मेरे सोसलनेटवर्क
ग्रुप पर जुड़ीं। लगभग 27
वर्षों के अंतराल के बाद उनसे दुबारा
सम्पर्क होना बड़ी सुखद व सुंदर अनुभूति है। वे जितनी सुंदर उतनी ही होनहार छात्र
थीं, वैसे मेरा स्वयं का अनुभव रहा है कि
लड़कियाँ प्राय: पढ़ने में होनहार व लगनशील होती हैं जिसपर कोई भी पिता गर्व अनुभव
करना चाहेगा।
पढ़ाई
पूरी कर व अपने विवाह के पश्चात वे गृहिणी की भूमिका भी उतनी ही तन्मयता व लगन से निभाने
लगीं, और
कोई नौकरी करने, अपना
निजी प्रोफेशनल कैरियर बनाने के बजाय घर का विशेष खयाल रखने ,बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में सहयोग करने
व उनके साथ गुणात्मक समय बिताने को प्राथमिकता
दीं।पतिदेव एक सफल डॉक्टर हैं,
उनके दो बेटे हैं,जो अपने माँ-पिता की ही तरह पढ़ाई में
काफी होनहार है,एक मेडिकल कॉलेज का छात्र है और दूसरा
भी कॉलेज ज्वाइन करने की तैयारी में है।
हमारी
बातचीत के सिलसिले में मेरे यह कहने पर कि उन्होने परिवार,अपने पति,और
बच्चों की सफलता के लिये कितना त्याग किया है,तो
उन्होने अपने सौम्य स्वभाव के मुताबिक बड़ी मुलायमियत से मुझे टोंकते कहा कि यह
उनका त्याग नहीं बल्कि इसमें उनकी आत्मिक संतुष्टि है।वैसे तो उनके सौम्य व सुंदर
व्यक्तित्व व व्यवहार का मैं अपने कॉलेज के दिनों से ही कायल था, यह अलग बात है कि उन दिनों उनसे कभी
इसका इजहार न कर सका,
किंतु उनके इस गरिमामय विचार को जान
उनकी शख्सियत मेरे मन में अति विशेष हो गयी।तब मुझे यह अनुभूति हुई कि इतना
गरिमामय विचार एक माँ या पत्नी ही दे सकती है।
हमारे
हर परिवार की गृहिणी एक माँ की भूमिका में, एक पत्नी की भूमिका में,पूर्ण आत्मिक
संतुष्टि से हमारे अस्तित्व , हमारे निर्माण, हमारी उन्नति व प्रगति की आधारशिला
बन सम्बल प्रदान करने के साथ-साथ स्थायित्व भी प्रदान करती हैं।वे हमारी
खुशियाँ,हमारे सपने,हमारी सफलताओं को स्वयं में आत्मसात कर इन्हें ही अपनी खुशियाँ,सपने
व स्वयं की सफलता मान लेती हैं, इसी में वह अपनी आत्मिक संतुष्टि अनुभव करती
हैं,भला इससे बड़ा व अद्भुत दिव्यकवच हमारे जीवन का क्या हो सकता है ।
ये
गृहिणियाँ,जो कभी स्वयं होनहार व प्रतिभाशील छात्र थीं,यदि चाहतीं व ऐसा निर्णय लेतीं तो स्वयं का एक
सफल प्रोफेसनल कैरियर बना सकती थीं, और अपनी स्वयं की सफलता में आत्म-मुग्ध
हो सकती थी। किन्तु यह गरिमा व महानता एक नारी ही निर्वाह कर सकती है कि स्वयं एक
भव्य-अट्टालिका के शिखर पर स्वर्ण-कलश की शोभा बनने की चाहत रखने के विपरीत उसकी
नींव की मजबूत आधारशिला बन अपने को किसी प्रसिद्धि या कार्यप्रदर्शन से परे व आवरण
मे रखते हुये, इस अट्टालिका के स्थाई सम्बल व सम्पूर्ण अस्तित्व का कारण बनना अपने
पूर्ण आत्म- संतुष्टि भाव के साथ सहज
स्वीकार कर लेती हैं।
हमें
यह निरंतर स्मरण रहना चाहिये कि स्त्री की इसी गरिमा से हम सभी अपने जीवन में निरंतर पोषित व संरक्षित
रहे हैः- जो बचपन में माँ के रूप में व बड़े होने पर पत्नी के रूप में हमें
धन्य-लाभ करती है।
मैं
नारी के गृहिणी स्वरूप को नमन करता हूँ, उनके प्रति जयशंकर प्रसाद की निम्न
पंक्तियों के साथ श्रद्दा अर्पण करता हूँ-
नारी
तुम केवल श्रद्धा हो,विश्वास रजत नभ तल में।
पियूष
श्रोत सी बहा करो, जीवन के अंतस्तल में।।
मैं नारी के गृहिणी स्वरूप को नमन करता हूँ, उनके प्रति जयशंकर प्रसाद की निम्न पंक्तियों के साथ श्रद्दा अर्पण करता हूँ-
ReplyDeleteनारी तुम केवल श्रद्धा हो,विश्वास रजत नभ तल में।
पियूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के अंतस्तल में।।
देवेन्द्र भाई,आपकी सुन्दर भावनाओं को सादर नमन.
सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार.
कितने दिनों से इस पोस्ट की प्रतीक्षा कर रहा था। अभी अपनी मैडम को पढ़ाता हूँ।
ReplyDeleteराकेश जी व प्रवीण जी आपका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआपने तो अपनी बात कह दी, आपकी सहपाठी की अपनी अभिरूचि थी और उस अनुसार उन्हें जीवन साथी मिल गया और सब कुछ सुंदर है. और मेरी निजी राय में यही होना चाहिये.
ReplyDeleteलेकिन आजकल के युवा DINK वाले फ़ार्मुले पर चल रहे हैं, अधिकतर लडकों को कमाऊ बीबी चाहिये, अगर लडकी चाहे भी कि वो सिर्फ़ घर संभाले तो आजकल लडका तैयार नही होगा.
अन्यथा ना ले, यह आजकल अडोस पडोस का मेरा अपना सिर्फ़ अनुभव है (सोच नही) जिसे मैने यहां प्रासंगिक जानकर लिख दिया है.:)
रामराम.€
रामराम.
बहुत ही सार्थक और सुन्दर पोस्ट है...हार्दिक धन्यवाद...
ReplyDeleteसर आपकी सहपाठी ने बिलकुल सही कहा की ये त्याग नहीं है, आत्मा संतुष्टि है और शायद इसीलिए वो अपना १००% दे पायी . मेरा मानना है की अगर आप एक गृहणी के रूप में अपने आप को ज्यादा खुश पाते है तो वो रोल अपनाएं और अगर काररीएर में आगे बढ़ना चाहते है तो घर के साथ उसमे भी चुन सकते हैं, पर हर हाल में जो भी राह चुने उसमे खुश रहे, अगर आपने काररीएर छोड़ के गृहणी बन जाते पर खुश नहीं रहते तो आप इस गृहणी का रोल को भी अच्छे से नहीं निभा पाएंगे. तो आप जो भी रास्ता चुने उसमे खुश रहे तभी आपके आस पास के लोग भी खुश रहेंगे और आपका परिवार भी
ReplyDeleteसर आपकी सहपाठी ने बिलकुल सही कहा की ये त्याग नहीं है, आत्मा संतुष्टि है और शायद इसीलिए वो अपना १००% दे पायी . मेरा मानना है की अगर आप एक गृहणी के रूप में अपने आप को ज्यादा खुश पाते है तो वो रोल अपनाएं और अगर काररीएर में आगे बढ़ना चाहते है तो घर के साथ उसमे भी चुन सकते हैं, पर हर हाल में जो भी राह चुने उसमे खुश रहे, अगर आपने काररीएर छोड़ के गृहणी बन जाते पर खुश नहीं रहते तो आप इस गृहणी का रोल को भी अच्छे से नहीं निभा पाएंगे. तो आप जो भी रास्ता चुने उसमे खुश रहे तभी आपके आस पास के लोग भी खुश रहेंगे और आपका परिवार भी
ReplyDeleteहमारे हर परिवार की गृहिणी एक माँ की भूमिका में, एक पत्नी की भूमिका में,पूर्ण आत्मिक संतुष्टि से हमारे अस्तित्व , हमारे निर्माण, हमारी उन्नति व प्रगति की आधारशिला बन सम्बल प्रदान करने के साथ-साथ स्थायित्व भी प्रदान करती हैं।वे हमारी खुशियाँ,हमारे सपने,हमारी सफलताओं को स्वयं में आत्मसात कर इन्हें ही अपनी खुशियाँ,सपने व स्वयं की सफलता मान लेती हैं, इसी में वह अपनी आत्मिक संतुष्टि अनुभव करती हैं,भला इससे बड़ा व अद्भुत दिव्यकवच हमारे जीवन का क्या हो सकता है ।
ReplyDeleteमहिलाएं हों या पुरुष आपके ये विचार सबके ह्रदय में उतरने वाले हैं..... आभार इन सार्थक विचारों को साझा करने का.....
कुंठित होकर सिर्फ गृहिणी या कामकाजी बनने से बेहतर है, वह किया जाए जो आत्मसंतुष्टि दे !
ReplyDeleteमहिलाओं के कई गुणों की बराबरी पुरुषों के लिए संभव ही नहीं|
ReplyDeleteआत्मसंतुष्टि की बेहद संतुलित परिभाषा मिली।
ReplyDeleteनारी शक्ति कलयुगे!:)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट छूट रही थी। प्रवीण जी के ब्लॉग से यहां आ गया। अच्छा लगा।
ReplyDeleteऐसी महिलाओ की कमी नहीं है जो शिक्षा बस ज्ञान प्राप्ति के लिए करती है जीवन को और अच्छा बनाने के लिए करती है जरुरी नहीं है की हर व्यक्ति नौकरी करने के लिए ही शिक्षा लेता है ऐसे मामलों में यदि महिलाए सिर्फ गृहणी है तो निश्चित रूप से वो अपनी इच्छा का काम कर रही है और वो संतुष्ट होंगी | किन्तु जो महिलाए शिक्षा ये सोच कर प्राप्त करती है की वो जीवन में और कुछ भी करेंगी यदि उन्हें सिर्फ गृहणी बन कर रहने के लिए मजबूर किया जाये तो वो कुंठित होंगी और संभव है की घर भी ठीक से ना संभाल सके जिसके लिए उन्हें काम नहीं करने दिया जाता है जबकि ये संभव है की वो अपने मन का काम करने के बाद इतनी संतुष्ट और खुश रहे ही घर पहले से बेहतर तरीके से संभाल सके |
ReplyDeleteप्रवीण जी की पोस्ट से प्रेरित होकर इस पोस्ट पर आयी हूँ, बहुत ही सरस और उपयोगी पोस्ट है। बधाई।
ReplyDeleteआकर्षक लेख है. मेरे विचार से यह एक समर्पण की भावना है. जिसमें एक अलौकिक प्रेम समाहित होता है.
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ReplyDeleteparaveen ji ki post se yaha aana hua aur jaha tak yaad hai shayad pahli ya dusri baar hi aana hua.aapko padhkar accha laga...bahut accha
ReplyDeleteवे हमारी खुशियाँ,हमारे सपने,हमारी सफलताओं को स्वयं में आत्मसात कर इन्हें ही अपनी खुशियाँ,सपने व स्वयं की सफलता मान लेती हैं..
ReplyDeleteवाकई, अगर पुरुष को यह सब करना पड़े तो?
कई ऐसी महिलाएँ भी हैं...जिन्होंने कैरियर भी बनाया..पर जब बच्चों को उनकी जरूरत हुई...तो कैरियर को अलविदा कह दिया.
ReplyDeleteहर हाल में निर्णय खुद महिला का होना चाहिए कि वो कैरियर अपनाना चाहती है. या सिर्फ गृहकार्य .
टिप्पड़ी हेतु आप सबका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteUsko nahi dekha hamne kabhi, to uski jaroorat kya hogi ee Maa teri soorat se alag bhagwan ki soorat kya hogi
ReplyDeleteसंस्कारपूर्ण मन की मनोरम अभिव्यक्ति प्रमुदित कर गई !
ReplyDeleteप्रवीण जी को धन्यवाद कि उनके सोंधे छौंक वाला लेखन पढ़ने को प्रेरित कर गया .
प्रवीण जी, धन्यवाद कि आपके सोंधे छौंक वाला लेखन वह मनोरम अभिव्यक्ति पढ़ने को प्रेरित कर गया .
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